गुरुवार, 22 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के जन्मदिन 22 जुलाई पर प्रत्यक्ष मिश्रा का आलेख


धूप में

जब भी जले हैं पाँव

घर की याद आई

नीम की
छोटी छरहरी
छाँह में
डूबा हुआ मन
द्वार का
आधा झुका
बरगद : पिता
माँ : बँधा आँगन
सफर में
जब भी दुखे हैं घाव
घर की याद आई

यह शहर का
शोरगुल
वह गाँव का
सूता-परेता
आग में झुलसी हुई
तुलसी
धुएँ में
जया-जेता
रेत में
जब भी थमी है नाव
घर की याद आई

इस गीत के रचनाकार  यश भारती पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ नवगीतकार माहेश्वर तिवारी जी का आज जन्मदिन है, जो माहेश्वर तिवारी जी के करीबी रहे हैं वे अच्छे से जानते होंगे कि, सब उन्हें दादा कहते हैं। हमारे दादा आज 81 वर्ष के हो चुके हैं, लेकिन उनके नवगीत आज भी बिल्कुल ताजगी भरे हैं।
     18 मार्च 2021 का दिन मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगा। इस दिन मुरादाबाद के हिन्दू कॉलेज में हिन्दी परिषद की बैठक में विशेष अतिथि के रूप में दादा शामिल हुए थे। इस बैठक में हिन्दी परिषद के अध्यक्ष के रूप में मुझे दादा के करकमलों से सम्मानित होने और उन
     का उद्बोधन सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । उन दिनों कृषि कानूनों का विरोध भी आवेग पर था। दादा ने अपने उद्बोधन में कहा -"कि जब-जब सत्ता निरंकुश होगी, तब-तब ओजस्वी कवि रामधारी सिंह दिनकर की रचना -'सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है' गूंजेगी। आज सरकारें अपने खिलाफ सुनना नहीं चाहती, पत्रकारिता का गला घोट दिया गया। उपनिवेशवाद से लेकर हम आज यहां तक आए हैं, इसमें ना जाने कितने लेखकों, पत्रकारों, कवियों और समाजसेवियों ने अपनी भूमिका निभाई , केवल इसलिए कि हमें ऐसी सरकारों की जरूरत थी !!
(बर्फ होकर
जी रहे हम तुम
मोम की जलती इमारत में
इस तरह
वातावरण कुहरिल
धूप होना
हो रहा मुश्किल
जूझने को
हम अकेले हैं
एक अंधे महाभारत में’
दादा का यह गीत आज के माहौल को बताने के लिए काफी है। )

अपने सम्बोधन में आगे दादा ने आगे कहा था- कविता, सत्ता की निरंकुशता का पर्दाफाश करती है, आपातकाल लगने पर जैसे दुष्यंत कुमार की गजलें मुंहजुबानी गायी जाती थी ,जरूरत पड़ने पर ऐसा दोहराया जा सकता है। दादा कहते हैं , कविता में कवित्व महाप्राण अंग है, जो उसकी नींव है। यदि कविता में कवित्व मर जाए, तो कवि को हम जिन्दा कह सकते हैं क्या ?? कदापि नहीं!!
हर आदमी हथियार लेकर युद्ध नही करता। युद्ध संसाधनों का नहीं, साहस का काम है। सच्चा रचनाकार कालजयी होता है, जो हमेशा-हमेशा के लिए अपने पाठको में जीवित रहता है। पाठक, किसी भी लेखक के स्तम्भ होते हैं समय की मांग है, कि लेखको को अपने पाठको से संवाद करना चाहिए, ताकि लेखन को आवश्यकतानुसार मोड़ा जा सके। लेखक समाज की वह नींव है, जिस पर इमारत खड़ी की जाती है। यदि भविष्य को सुधारने के लिए लेखक सख़्त हो जाए, तो दुनिया की कोई ताकत भविष्य को बिगाड़ नहीं सकती।
    कविता की भाषा के बारे में दादा ने कहा कि, कविता की भाषा केवल एक होती है वो है- संवेदना। कविता का मतलब केवल छंद होना नहीं है। हर वो लाइन कविता है जिसमें संवेदना शामिल होती है। जिस कवि में यह गुण विद्यमान है, उसके लिए कविता लेखन वरदान है।
      हमारे निवेदन पर उन्होंने अपना एक चर्चित गीत भी सुनाया था ---- 
एक तुम्हारा होना
         क्या से क्या कर देता है,
बेजुबान छत दीवारों को
         घर कर देता है ।

ख़ाली शब्दों में
         आता है
ऐसे अर्थ पिरोना
गीत बन गया-सा
         लगता है
घर का कोना-कोना

एक तुम्हारा होना
        सपनों को स्वर देता है ।

आरोहों-अवरोहों
         से
समझाने लगती हैं
तुमसे जुड़ कर
        चीज़ें भी
बतियाने लगती हैं

एक तुम्हारा होना
       अपनापन भर देता है ।

आज उनके जन्मदिन पर मुझे उनके कई गीतों का स्मरण हो रहा है ----
‘याद तुम्हारी जैसे कोई
कंचन-कलश भरे
जैसे कोई किरन अकेली
पर्वत पार करे
लौट रही गायों के संग-संग
याद तुम्हारी आती
और धूल के संग-संग मेरे
माथे को छू जाती
दर्पण में अपनी ही छाया-सी
रह-रह उभरे
जैसे कोई हंस अकेला
आंगन में उतरे’

     हिन्दी के विख्यात गीतकवि स्व. भवानीप्रसाद मिश्र को उक्त गीत बहुत पसंद था, उन्होंने होशंगाबाद के एक कवि सम्मेलन में इस गीत की काफी प्रशंसा की थी ।
  उनका ये गीत आज की स्थितियों-परिस्थितियों की ओर संकेत करता है -----
आने वाले हैं
ऐसे दिन आने वाले हैं
जो आँसू पर भी
पहरे बैठाने वाले हैं
आकर आसपास भर देंगे
ऐसी चिल्लाहट
सुन न सकेंगे हम अपने ही
भीतर की आहट

शोर-शराबे ऐसा
दिल दहलाने वाले हैं’
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सोये हैं पेड़
कुहरे में
सोये हैं पेड़।

पत्ता-पत्ता नम है
यह सबूत क्या कम है

लगता है
लिपट कर टहनियों से
बहुत-बहुत
         रोये हैं पेड़।

जंगल का घर छूटा,
कुछ कुछ भीतर टूटा
शहरों में

बेघर होकर जीते
सपनो में खोये हैं पेड़।


✍️  प्रत्यक्ष मिश्रा , गाँव बांसली, पोस्ट - पीपली कलां , थाना - रजबपुर , ब्लाक - गजरौला ,  जिला अमरोहा
ईमेल - prataykshmishra@gmail.com
फोन - +917351225572




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