बुधवार, 28 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ---सुरसा सी महंगाई देखो, मुँह बाए प्रत्यक्ष खड़ी है, भूख, गरीबी, लाचारी की, आज किसे परवाह पड़ी है,


ओढ़ झूठका स्वयं लबादा,

बन   बैठे   साधू  सन्यासी,

झूठों को सम्मानित करके,

सच्चों  को  ये  देते  फांसी।

         

बिल्ली भाग्य टूटते  छींके, 

फिरहरपल इतरातेक्योंहो,

साम-दाम से सत्ता पाकर,

ईश्वर को झुठलाते क्योंहो,

वैर भाव का पाठ पढ़ाकर,

जन-मानस में भरें उदासी।


सुरसा  सी  महंगाई  देखो,

मुँह  बाए प्रत्यक्ष खड़ी  है,

भूख, गरीबी, लाचारी  की,

आज किसे परवाह पड़ी है,

हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई,

लगते  सारे  धर्म  सियासी।


खेती - बाड़ी, उद्योगों  की,

खुले आम बोली लगती है,

इनको   चेताने  वालों   के,

सीनों में  गोली  लगती  है,

सिर्फ आंकड़ों में जिंदा  हैं,

सूख रही हैं फसलें प्यासी।


आसमान छू  रही   पढ़ाई,

किसने इसपर रोक लगाई,

मनचाहा  व्यापार बनाकर,

शिक्षा   की  दे  रहे  दुहाई,

पुश्तैनी   धंधे   की    नेता,

सीख दे रहे अच्छी-खासी।


लोगों  में  सद्भाव  नहीं  है,

सर्व धर्म समभाव  नहीं  है,

सिर्फ वोटकी राजनीति से,

बढ़कर कोई दांव  नहीं  है,

पर उपदेश कुशल  बहुतेरे,

फंसते इसमें नगर निवासी।

             

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र, भारत,  मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

                  

                       

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