मंगलवार, 27 जुलाई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा ----बहु


रिद्धिमा विवाह से पहले बहुत डरी हुई थी ।उसे डर विवाह से नही ,बल्कि अपनी सासू माँ से लग रहा था ।जैसा कि उसे पता था ,कि सास बहुत तेज होती हैं ,जरा चैन नही लेने देती ,आदि- आदि ।        खैर, विवाह का दिन भी आ गया फेरे ले रिद्धिमा रोहित के साथ विदा हो अपनी सपनों की दुनिया ले ससुराल आ गयी ।उसे मन ही मन डर लग रहा था ।खैर, रोहित की दिलासा से वह थोड़ी सहज हुई ।।       अगले दिन सबेरे उठ उसने सबसे पहले नहा-धो कर चाय बना कर सासु माँ के कमरे में पहुँचाने गई।सासु माँ उठ चुकी थीं व पूजा कर रही थी ।रिद्धिमा को देख बोली ",बैठो बेटा, मैं जानती हूँ, तुम्हें नए परिवेश में ढलने में थोड़ा वक्त लगेगा ।लेकिन इस बात की कतई चिंता मत करना ,धीरे- धीरे तुम यहाँ के सारे तौर-तरीके , रीति -रिवाज सीख जाओगी।और फिर घबराहट कैसी, मैं हूँ तुम्हारे साथ , जो समझ न आये बेहिचक मुझसे पूछ लो ।

       आखिर माँ हूँ तुम्हारी ,आज से एक नही दो माएँ हैं तुम्हारी ।एक मायके में और एक ससुराल में।कह पल्लवी ने रिद्धिमा को गले लगा लिया ।सच रिद्धिमा का सारा डर एकदम दूर हो गया ।वह सोच रही थी ,कितनी भाग्यशाली है वह जो उसे ऐसी सासू माँ मिली ।आज पंद्रह वर्ष बीत जाने पर भी दोनों में वैसा ही अगाध प्रेम है ,जैसा पहले था ।माँ -बेटी जैसा और रिद्धिमा ने भी सही अर्थों में अच्छी बहु होने की परिभाषा गढ़ दी ।जो केवल और केवल आपसी सामंजस्य से ही सम्भव हो पाई ।

✍️ डॉ शोभना कौशिक, बुद्धिविहार, मुरादाबाद

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