"निजी क्षेत्रों के स्कूल-कॉलेज, लघु उद्योग, कारखाने, बैंक, मॉल, नैट वर्किंग, मनोरंजन के अनेक क्षेत्र, भवन निर्माण आदि या कृषि से जुड़े सभी मालिकान के कारण ही लोगों को रोज़गार मिला हुआ है । इससे ही लोगों का जीवनयापन हो रहा है अन्यथा सरकार किस-किस का प्रबंध कर सकती है?" -- प्रश्नभरे अंदाज़ में अनुपम ने श्रेयांश को बताया ।
तभी श्रेयांस ने भी प्रश्नवाचक चिन्ह लगा ही दिया--"जिन सरकारी क्षेत्रों में लोग अपना जीवनयापन कर रहे हैं; वे सभी सुखी हैं । काम के घंटे नियत हैं ।समय पर वेतन मिलता है । अच्छा काम करने वाला उन्नति पाता है और मक्कार को अवनति मिलती है । यह चिंता भी नहीं रहती कि कब रोजी-रोटी हाथ से चला जाये? और निजी क्षेत्रों वाले मालिकान रोजगार देने के नाम पर केवल शोषण करते हैं । कर्मचारी के काम पर आने का समय नियत है पर काम समाप्त करके कब घर जायेगा; कुछ पता नहीं । वेतन के नाम पर पूरा पारिश्रमिक नहीं देते । मनमानी रकम पर काम पर रखते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि बेरोजगारी अधिक है । उतने पैसे नहीं देते जितना खून चूस लेते हैं । वे उसका अनुचित लाभ उठाते हैं । अवकाश नहीं देते ।" अपनी बात को जारी रखते हुए श्रेयांश ने कहा-- "यही सत्यता है अनुपम जी । रोजगार सरकार का ही अच्छा है । निजी क्षेत्र के लोगों ने ही सरकारी सेवकों को बुरा बना रखा है । यही लोग इन्हें बिगाड़ते हैं । अपना काम जल्दी करवाने के चक्कर में तरह-तरह के लालच देते हैं और फिर बुरा कहते हैं । हाँ, सरकार को हर क्षेत्र में सरकारीकरण पर बल देना चाहिए । नहीं तो नियम ऐसे बनाये जायें जिसे निजी क्षेत्र के मालिकान सरकार की तरह अपने कर्मचारियों को सभी सुविधाएं उपलब्ध करायें ।"
अब अनुपम चुप रह कर श्रेयांश की बातों को गंभीरता से ले रहा था ।
✍️ राम किशोर वर्मा,रामपुर (उ०प्र०)
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