मैं भारत को नमन करती हूँ
उसके सच्चे सपूत
प्रेमचंद जी को नमन करती हूं
नमन करती हूंँ उस माँ को
उस धरती को नमन करती हूँ
धन्य हुई भारत भूमि
धन्य हुई वो जननी
जन्म दिया जिसने इस धरा पर
लेखनी के सच्चे सवांहक को
खाका उतार डाला यथार्थ का
लेखनी सत्य पर उकेरी थी
विडम्बनाओं से परे होकर
खुद अपनी आवाज उठाई थी
एक -एक कृतियों में उनके
जीवन जीवन्त हुआ
खुद भले ही मुश्किलें झेली
साहित्य का सागर भर डाला
एक से एक हीरे मोती से
श्रृंगार उसका कर डाला
दे दिया अनमोल खजाना हमको
जिसका कोई सानी न हुआ
इतिहास बन गये मुंशी जी स्वयं
उनसा न दूसरा ज्ञानी हुआ
✍️ शोभना कौशिक, बुद्धिविहार, मुरादाबाद
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