मंगलवार, 6 जुलाई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा के कहानी संग्रह-ये कहानी नहीं की अशोक विश्नोई द्वारा की गई समीक्षा----- जीवन की सच्चाई है -ये कहानी नहीं

 "ये कहानी नहीं " कहानी संग्रह की लेखिका सीमा वर्मा जी ने इस पुस्तक के आरंभ  में ही बता दिया है कि उनका यह लेखन जो उन्होंने जिया है, भोगा है और समाज में जो अनुभव किया है उसी का प्रतिबिंब है। पूरा संग्रह का अवलोकन करने के उपरांत उनका यह कथन सत्य प्रतीत होता है। वास्तव में प्रत्येक कहानी स्वयं बोल रही है कि वह कोई काल्पनिक पात्रों से गढ़ी कोई कथा नहीं है बल्कि  एक भोगा हुआ सत्य है। समाज में व्याप्त अनैतिकता, विद्रूपता, भृष्टाचार, अनाचार तथा राजनैतिक गिरावट किसी व्यक्ति विशेष तथा परिवारों पर किस प्रकार प्रभाव डालते हैं उन्हीं के परिणाम को व्यक्त करता हुआ यह कहानी संग्रह वर्तमान समाज की वास्तविक स्थिति को पाठकों के सम्मुख रखता है। कहीं भी कोई कृत्रिमता नहीं और न ही बोझिल शब्दों का आडम्बर। सीधी, सपाट ,सरल भाषा कहानियों को अत्यंत ह्रदय ग्राही बनाती हैं। कहते हैं कि हर चीज़ की एक सीमा होती है पर इन कहानियों को पढ़ने के बाद यह महसूस होता है कि सीमा वर्मा जी के विचारों के फलक की  सीमा अंतहीन है। 

      कहानी संग्रह की पहली कहानी "कुत्ते " पुरुष वादी समाज की उस कुत्सित मानसिकता के दर्शन कराती है जिसे समाज में हर स्त्री किसी न किसी रूप में अवश्य भोगती है जबकि "पेमेंट " कहानी वर पक्ष की दहेज के लिए लपलपाती जीभ और काइयाँ पन को उजागर करती है। "मोहभंग " में महिलाओं की उस प्रवृति को उजागर किया है कि चाहे कैसा भी अवसर हो महिलाएं चुप नहीं बैठ सकती। उनकी खुसुर - फुसुर और चुगल खोरी बंद नहीं होती। 

  " कर्तव्यनिष्ठा " कहानी में स्त्री के अपने पति के प्रति कर्तव्य परायणता के लिए कुछ भी कर सकने के भाव को दिखाया गया है चाहे उसे मजबूरी में  कोई गलीज़ काम क्यों न करना पड़े। इसमें समाज की विद्रूपता को सामने लाया गया है। "दूसरी " में सौतेली माँ की व्यथा को लेकर चिंता व्यक्त की गयी है। जन सेवक कहलाने वाले राजनैतिक नेताओं के  घृणित आचरण को "रंगा सियार " में उघाड़ा गया है। "किराये दार " में कारपोरेट कल्चर में रंगे बेटों की मानसिकता और आचरण के वास्तविक दर्शन कराये गये गये कि वे रक्त सम्बन्धों को भी किस उपेक्षित दृष्टि से देखते हैं। "मंथरा " में यह बताने की कोशिश की गयी है कि बिना सत्य जाने सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करने का क्या परिणाम होता है। 

  " नये साल का जश्न " में उन लोगोँ को  समझाने का प्रयास किया गया है जो पैसे की फ़िज़ूल खर्ची करते हैं जबकि उस पैसे से किसी जरूरत मंद की सहायता की जा सकती है। "शरीफों का मुहल्ला " कहानी में मोहल्लों में होनी वाली पड़ोसियों की बेमतलब की आपसी लड़ाइयों , पुरानी पीढ़ी के दोहरे चरित्र तथा नई पीढ़ी पर बिना सोचे समझे इल्जाम लगाने की मानसिकता की अच्छी खबर ली गई है। संकलित सभी कहानियाँ कोई न कोई संदेश देकर समाज को सावधान करती नज़र आती है जो कि साहित्य का प्रमुख उद्देश्य है। 

    कहानियों के अतिरिक्त पुस्तक में "ये कहानी नहीं " नाम से एक लघु उपन्यास भी है जिसका ताना बाना परिवार में पति - पत्नी के बीच कटु सम्बन्ध, शक -शुबहा, प्रेम, समर्पण आदि  दैनिक समस्याओं पर आधारित है। 

     कुल मिलाकर यह पुस्तक पाठकों , विशेष कर महिला पाठकों के लिए अत्यंत रुचिकर, संदेश प्रद व प्रेरणा दायक सिद्ध होगी। मुझे पूरा विश्वास है कि इस पुस्तक का साहित्य जगत में भरपूर स्वागत होगा । 

     अंतर्मन को छूती संवेदन शील कहानियों के लेखन के लिए सीमा वर्मा जी वास्तव में धन्यवाद की पात्र हैं ।पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए सहित्यपीडिया पब्लिशिंग को साधुवाद।


कृति : "ये कहानी नहीं" (कहानी संग्रह )

लेखिका : सीमा वर्मा

प्रकाशन वर्ष : 2021

मूल्य : ₹ 150, पेज़ : 109

प्रकाशक : सहित्यपीडिया पब्लिशिंग, नोएडा, भारत

समीक्षक : अशोक विश्नोई, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश,भारत

               

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