रविवार, 4 जुलाई 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से 4 जुलाई 2021 को गूगल मीट पर आयोजित काव्य-गोष्ठी

 


मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार 4 जुलाई 2021 को गूगल मीट पर एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन  किया गया। 

 राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम में अध्यक्ष गजरौला निवासी सुप्रसिद्ध  कवयित्री डाॅ. मधु चतुर्वेदी ने गीत प्रस्तुत करते हुए कहा---

"बहुत अचकचाती सी आती है आँगन मेँ भोर। बाहर भीतर पसर गया है सन्नाटे का शोर।   शंकाओं का तानाबाना ओढ़ लगा मन तपने।। लगने लगे अपरिचित से अपनी आँखों के सपने। रिश्तों का नैकट्य हो चला है,कुछ कुछ मुँह ज़ोर।"

      मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. मनोज रस्तोगी का गीत था ---

      "स्वाभिमान भी गिरवी 

      रख नागों के हाथ, 

      भेड़ियों के सम्मुख 

      टिका दिया माथ।

       इस तरह होता रहा

        अपना चीरहरण।।" 

       विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवि श्रीकृष्ण शुक्ल का आह्वान था - 

       "द्वेष घृणा मिट सके दिलों से, 

       कुछ ऐसे अश्आर लिखें। 

       मानवता दम तोड़ रही है, 

       इसका कुछ उपचार लिखें।। 

       बीत गयी सो बात गयी जो, 

       आनी है सो आयेगी। 

       वर्तमान को जी भर जी लें, 

       जीवन के दिन चार लिखें।।"

       विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने जीवन का चित्र खींचते हुए कहा -          "कोरे काग़ज़-सी निश्छल है, 

       भोली है मन की। 

       घर भर को महकाने वाली, 

       खुशबू आँगन की। 

       पता नहीं क्यों रहती

        फिर भी रूखी-अन्जानी,

         मोबाइल में उलझी 

         मुनिया भूली शैतानी।।"

 वरिष्ठ साहित्यकार अशोक 'विद्रोही' ने देशभक्ति की अलख कुछ इस प्रकार जगाई -

  "अब  महा शक्तियों  से  ऊपर, 

  नित अपना ध्वज लहराता है।

   मेरा देश  बदलता  जाता है,

   परिवेश बदलता  जाता  है।।"

कार्यक्रम का संचालन करते हुए  युवा साहित्यकार राजीव 'प्रखर' ने कहा -

    बाहर वृक्षों का क्षरण, भीतर कलुष विचार। 

    हो कैसे पर्यावरण, इस संकट से पार।। 

    क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस। 

    जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।"

    चर्चित साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट ने इन शब्दों के साथ नारी-शक्ति का आह्वान किया - 

     "क्यों ताकती है मुँह औरों का.....

      सुन अरी! ये जो मुस्कान है न, 

      उन होंठों पर....,

       तेरी ही दी हुई है।"    

कवयित्री इन्दु रानी की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही  - "रेल नौकरी अब कहाँ, बेच रहे हैं रेल।

 जिंदगी का जीवन से, होगा कैसे मेल।।"

 प्रशांत मिश्र ने हुंकार भरते हुए कहा  - 

 "अपनों का आना सिर्फ हवा का झोंका है। 

 चिता पर छोड़ आते समय कितनों ने रोका है।।"  

 कवि आशीष शर्मा का कहना था  - 

 "युद्ध के पराक्रम की शौर्य गाथाओं में

  आज अपना भी नाम मैं शुमार कर आया माँ,

   एक मैं अकेला और वो थे दुश्मन हजार

    एक एक का मैं संहार कर आया माँ।।"  

 


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