आये नन्हें बाल
देख खेल-मैदान
करने पुनः धमाल
जब मुन्नी छिप जाय
सब हैं जुगत लगाय
कोई ढूँढ न पाय
दौडे वे चहुँ ओर
छूने अनंत छोर
रहे शाम या भोर
बचपन का वो द्वार
मीठा प्यार दुलार
भूलता न वो प्यार
प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा
---------------------------------------
कितनी बड़ी लगीबादल में,
बोलो अम्मा जाली,
जिसमें छनकर नींचे आतीं,
यह बूंदें मतवाली।
भरते ताल, तलैया सारे,
बहते सभी पनारे,
उफनाती नदियों में कटकर,
गिरते रोज़ किनारे,
हफ्तों गरज बरसके बादल,
करते खुदको खाली।
ठंडी-ठंडी बूंदे टिप-टिप,
जब शरीर पर गिरतीं,
गर्मी से छुटकारा देकर,
मन खुशियों से भरतीं,
नभ में कैसे रुकता अम्मा,
बादल है बलशाली।
सचमुच धन बरसातींअम्मा,
रिमझिम गिरती बून्दें,
अम्मा कहाँ कहाँ बतलाओ,
उन बूंदों को ढूंढें,
बोलो नन्हीं बूंदें कैसे,
भरतीं हैं हरियाली।
नानी कहतीं बरसातों में,
होती खूब कमाई,
बाजारों में छतरी के संग,
बरसाती भी आई,
भुने चने मक्का के फूले,
खाते भर-भर थाली।
समझ गया जाली फटने पर,
गिरते मोटे ओले,
उठा उठाकर खाते झटपट,
जिनको बच्चे भोले,
अरे 'मरो' मतखाओ कहकर,
देती अम्मा गाली।
वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद, उ,प्र , भारत 9719275453
------------------------------------------
कोयल कहती मीठा बोलो, फूल कहें मुस्काओ।
चिड़िया चूँ-चूँ करके बोले, शीघ्र सुबह उठ जाओ।
चींटी यह कहती है हमसे, श्रम की रोटी खाओ।
कुत्ता भौं-भौं कर बतलाता वफादार बन जाओ।।
नदी सिखाती चलते रहना, थक कर मत रुक जाना।
पर्वत कहता तूफानों को, कभी न शीष झुकाना।।
वृक्ष हमें फल देकर कहते सदा भलाई करना।
मधुमक्खी सिखलाती हमको सदा संगठित रहना।।
✍️ दीपक गोस्वामी चिराग, शिवबाबा सदन कृष्णाकुंज, बहजोई(सम्भल) पिन 244410 उ.प्र. भारत, मो. 9548812618
ईमेल- deepak chirag.goswami@gmail.com
------------------------------–--------------
आज बचपन कहीं खो रहा है,
मैदान स्कूल का, सूना हो रहा है।
कॉपी बस्ता ख्वाब हो गए,
ऑनलाइन सारे बच्चे हो गए।
नए अनुभव सब नित ले रहे,
शिक्षा अब, हम सब ले रहे।
बच्चों तुम हिम्मत न हारो,
नए ढंग से जीवन संवारो।
अंधेरी रात, बीत जाएगी।
नई सुबह, रोशनी लाएगी।
नया दौर है, नया तौर है।
मेहनत तुम्हारी, रंग लाएगी।
वैशाली रस्तोगी, जकार्ता
--------------------------------------------
मौसम है ये गर्मी का ,
नहीं किसी से डरने का ,
मौज -मस्ती और हो -हो हल्ला ,
घर में ही हो गई पिकनिक तगड़ा ,
कोरोना जी ने छड़ी घुमाई ,
आइसक्रीम तो छोड़ो ,
कोल्ड ड्रिंक भी छुड़ाई ,
सादा पानी और बस हम ,
साथ में मम्मी का बड़ा सा मंत्र ,
डॉ शोभना कौशिक, बुद्धिविहार, मुरादाबाद
-----------------------------------------------------
इक इन्सानी बच्चा जब से ,
गांव छोड़ जंगल आया।
हिल मिल गया सभी से ऐसा,
जंगल में मंगल छाया।।
अपने बच्चों जैसा ही जब,
उसे बगीरा ने माना ।
नाम मोगली पाया उसने,
सबको ही अपना जाना।
बल्लू भालू ने भी फिर तो,
उसे लगाया सीनै से।
खूब शहद तुड़वाया उससे,
तर हो गया पसीने से ।।
किन्तु नहीं जंगल के राजा,
को वह कभी सुहाता था।
सदा लगा था इसी घात में,
उसे मारना चाहता था।।
पशु पक्षियों की बोली भी,
वह अब खूब समझता था।
पर इंसानों से मिलने को,
उसका हृदय तरसता था।
गया एक दिन जब वह बस्ती,
नहीं किसी ने अपनाया।
भीड़ भरी दुनिया लोगों की,
अपना नहीं नजर आया।।
वापस लौटा फिर से जंगल,
बहुत दुखी था मन में वह।
पर जंगल में सारे खुश थे,
देख उसे सब अपना कह।।
मोर,कबूतर,तोता,मैना,
बुलबुल, बत्तख,और सारंग।
बंदर ,हाथी ,हिरन लौमड़ी,
सभी खेलते उसके संग।
छोटे बड़े सभी पशु पक्षी,
सब उसके हमजोली थे।
नहाते कभी नदी कीचड़ में,
कभी खेलते होली थे।।
तभी एक दिन बलि चढ़ाने,
महाकपि ले गया उसे।
ऊंचे दुर्गम एक शिखर पर,
बंदर जहां हजार घुसे।।
उसकी रक्षा करने को तब
बल्लू और बगीरा आये।
प्राण बचा कर मंदिर से,
उसको वापस जंगल में लाये।
शेरखान संग धूर्त तबाकी,
नयी चाल फिर चल डाली।
किन्तु मोगली बड़ा चतुर था,
हर शह थी देखी भाली।।
आग लगी जंगल जलता था,
शेर वृक्ष पर चढ़ आया।
झपटा शेर गिरा लपटों में,
झूल मोगली बच पाया।।
✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत, मोबाइल फोन नम्बर 821 8825 541
------------------------------------------
चुन्नू मुन्नू ने मिट्टी का
एक बनाया घर
फिर गीली मिट्टी से लेपा
भीतर और बाहर
दो कमरे और एक रसोई
अटरिया ऊपर
बाहर भीतर पेड़ लगाकर
बना दिया सुन्दर
दिन भर बच्चे रहे खेलते
मकान बनाकर
सब बच्चों ने खूब सराहा
बालगीत गाकर
✍️ धर्मेंद्र सिंह राजोरा, बहजोई ,जिला सम्भल ,उत्तर प्रदेश, भारत
-----------------------------------------------
नये दौर के बच्चे है हम,
हर मुश्किल से टकरायेगे।
भले कोरोना हो महामारी,
सबसे पार हम पा जायेगे।
माना मुश्किल बहुत राह में,
पर नई डगर भी सम्भव है।
स्कूल कालेज बन्द हुए तो,
ऑनलाइन का सुखद चलन है।
टेक्नोलॉजी सखा बनकर अब ,
हरपल साथ हमारे अडी खडी ।
नही समझते थे जिसको हम,
उसकी आसानी से समझ बढी।
मोबाइल कम्प्यूटर दोस्त हमारे,
हमको हरक्षण नया सिखाते हैं ।
मित्रों बौर कभी न होना तुम,
सदा हमको ये सिखलाते हैं ।
मात-पिता ओर गुरूजनों का ,
सदा ही सम्मान करेंगे हम ।
चाहे जैसी भी रहे परिस्थिति,
सदैव निडर अडिग रहेंगे हम ।
✍🏻सीमा रानी, पुष्कर नगर, अमरोहा ,उत्तर प्रदेश, भारत
--------------------------------------------
हम बच्चों ने सीख लिया है हरदम यूं मुस्काना।
हाथों में पतवार थाम कर साहिल तक है जाना।
हम खतरों से खेलने वाले हार कभी ना मानेंगे।
नहीं डरेंगे कोरोना से नियम सभी अपनाएंगे।
बार बार हाथों को धोना, मास्क अवश्य लगाएंगे।
भीड़भाड़ की जगह हमेशा उचित दूरी अपनाएंगे।
माता पिता की सेवा से जीवन सफल बनाएंगे।
सद्गुण और संस्कार सीख मां का मान बढ़ाएंगे।
पढ़ लिखकर रेखा जग में नूतन इतिहास बनाएंगे।
✍️रेखा रानी, गजरौला, जिला अमरोहा ,उत्तर प्रदेश, भारत
----------------------------------------
रिमझिम रिमझिम आयी बारिश
कितनी खुशियाँ लायी बारिश
बाल मनों की फैली अँजुली
अधर हँसी बन छायी बारिश ।
ताल - तलैया सभी भरे हैं
हुए पात धुल हरे हरे हैं
हवा चली है बिना धूल की
हरा धुंध है धायी बारिश ।
पोंछ पसीना बुरे हाल थे
बड़े बेहाल हाल चाल थे
घनी उमस की घबराहट से
राहत बड़ी है लायी बारिश ।
गरज गरज गा गीत सुनाती
झम झमाझम बूंद गिराती
भूरी काली घोर घटा में
बादलों संग पायी बारिश ।
डाॅ रीता सिंह , मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत
--------------------------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें