मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से सुप्रसिद्ध नवगीतकार यशभारती माहेश्वर तिवारी के नवीन नगर स्थित आवास पर होली के अवसर पर बुधवार 11 मार्च 2020 को काव्य-ठिठोली का आयोजन किया गया जिसमें उपस्थित स्थानीय कवियों ने कविताओं के माध्यम से होली पर फागुन और होली के रंग-बिरंगे वातावरण से संबंधित गीतों-ग़ज़लों के साथ साथ हास्य कविताओं से सभी को गुदगुदाया और देश व समाज में व्याप्त विसंगतियों पर कटाक्ष किए। अध्यक्षता सुप्रसिद्ध हास्य व्यंग्य कवि डा. मक्खन मुरादाबादी ने की, मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवयित्री डा. प्रेमवती उपाध्याय रहीं तथा संचालन नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया।
इस अवसर पर सुप्रसिद्ध नवगीतकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने गीत प्रस्तुत किया-
"बौरी है आमों की डाल
गीत फूटे फागुन के
दिन फूलों के रंग चुराये
फिरते सारे अंग सजाये
होरी मचाए धमाल
गीत फूटे फागुन के"
विख्यात हास्य-व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कविता प्रस्तुत की-
"सच को सच कहने में
उसके भीतर रहने में
अधिकतर डर लगता है
कब्जे में हो झूठ के जैसे
अब तो सारा घर लगता है"
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने गीत प्रस्तुत किया-
"तुझमें रंग भरे जीवन के
मुझमें भरी मिठास
चल मिलकर वापस लाते हैं
रिश्तों में उल्लास
अपनेपन के गाढ़े रँग से
रचें नई रंगोली
विशाखा तिवारी ने कविता पढ़ी-
"सुनो शायद आ गए ऋतुराज
पहने हुए पीले फूलों का ताज
स्वागत को तैयार है पूरी धरती"
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया-
"आचरण की गंध से कर दें सुवासित यह धरा
नित बहे अंत:करण में प्राणदायिनी निर्झरा"
डा. मनोज रस्तोगी ने कहा -
"स्वाभिमान भी गिरवीं रख नागों के हाथ
भेड़ियों के सम्मुख टिका दिया माथ
इस तरह होता रहा अपना चीरहरण"
शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-
"जिंदगी रोक के अक्सर यही कहती है मुझे
तुझको जाना था किधर और किधर आ गया है"
कवयित्री निवेदिता सक्सेना ने सुनाया-
"बस तुमसे मुलाकात का मौसम नहीं आया
बिछड़े हैं जबसे साथ का मौसम नहीं आया"
गोष्ठी में शिखा रस्तोगी, राधेश्याम तबलावादक, आशा तिवारी, आयुष आदि उपस्थित रहे।
:::::::::प्रस्तुति:::::::::
**योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
संयोजक
साहित्यिक संस्था 'अक्षरा'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
इस अवसर पर सुप्रसिद्ध नवगीतकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने गीत प्रस्तुत किया-
"बौरी है आमों की डाल
गीत फूटे फागुन के
दिन फूलों के रंग चुराये
फिरते सारे अंग सजाये
होरी मचाए धमाल
गीत फूटे फागुन के"
विख्यात हास्य-व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कविता प्रस्तुत की-
"सच को सच कहने में
उसके भीतर रहने में
अधिकतर डर लगता है
कब्जे में हो झूठ के जैसे
अब तो सारा घर लगता है"
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने गीत प्रस्तुत किया-
"तुझमें रंग भरे जीवन के
मुझमें भरी मिठास
चल मिलकर वापस लाते हैं
रिश्तों में उल्लास
अपनेपन के गाढ़े रँग से
रचें नई रंगोली
विशाखा तिवारी ने कविता पढ़ी-
"सुनो शायद आ गए ऋतुराज
पहने हुए पीले फूलों का ताज
स्वागत को तैयार है पूरी धरती"
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया-
"आचरण की गंध से कर दें सुवासित यह धरा
नित बहे अंत:करण में प्राणदायिनी निर्झरा"
डा. मनोज रस्तोगी ने कहा -
"स्वाभिमान भी गिरवीं रख नागों के हाथ
भेड़ियों के सम्मुख टिका दिया माथ
इस तरह होता रहा अपना चीरहरण"
शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-
"जिंदगी रोक के अक्सर यही कहती है मुझे
तुझको जाना था किधर और किधर आ गया है"
कवयित्री निवेदिता सक्सेना ने सुनाया-
"बस तुमसे मुलाकात का मौसम नहीं आया
बिछड़े हैं जबसे साथ का मौसम नहीं आया"
गोष्ठी में शिखा रस्तोगी, राधेश्याम तबलावादक, आशा तिवारी, आयुष आदि उपस्थित रहे।
:::::::::प्रस्तुति:::::::::
**योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
संयोजक
साहित्यिक संस्था 'अक्षरा'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
सुंदर आयोजन के लिए सभी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएं