आग बबूला हो लूओं ने
हाल बुरा कर छोड़ा तन का।
पुरवाई भी डरी पड़ी है
आया देख, पसीना घन का।।
आग टिकी आकर पेड़ों पर
छाया लगे खौलता पानी।
भुनने में कुछ कसर नहीं है
ज्वर में सब मौसम विज्ञानी।।
स्वयं रगड़ से धधकी ज्वाला
हाल न देखा जाये वन का।
भाप हो गई कूप सम्पदा
संकट है पर्वत से भारी।
लड़ी नदी भी कुछ दिन लेकिन
लगी सूखने जब थक हारी।।
पी चोहे ने चिह्न न छोड़ा
धार नदी के धारीपन का।
पशुओं तक की पीठ हुई है
चूल्हे पर रक्खा गर्म तवा।
नहा गरम बालू में चिड़ियां
जब चलीं खोजने दबी दवा।।
बही पूरबा, पछुवा भागी
आओ, घन बरसाने मन का।
✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश,भारत, मोबाइल : 9319086769
ईमेल: makkhan.moradabadi@gmail.com
शानदार गीत । बधाई ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएं