बुधवार, 17 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा---तकलीफ


चारपाई पर बीमार वृद्ध रमन बैचेनी से करवट बदल रहा था।अपनी पुत्रवधू से उसने सीने में दर्द की शिकायत की थी।रसोई घर में सब्जी काटती बहू ने उत्तर दिया,"मैं तो ले जा सकती नहीं आपको। ये आयेगें तो ले जायेगें,तब तक मैं गरम पानी की बोतल देती हूं सिकाई करें कुछ आराम आयेगा"।पुत्रवधू का उत्तर सुन वह अपनी युवावस्था में पहुंच गया जहाँ हेमंत को तेज बुखार में वह अपनी गोद मे उठाये अस्पताल की लम्बी लाइन मेंं लोगोंं से अनुरोध कर रहा था कि उसे पहले जाने दें उसका बेटा बहुत बीमार है।लोगों की टिप्पणी पर भी उसका ध्यान नहीं था।लगभग गिड़गिड़ाने तक की स्थिति आ गयी।अंततः एक व्यक्ति को उसपर दया आगयी और वह जल्दी डाक्टर के पास पहुंच गया।बुखार हल्का होनेतक वहीं रहा।पसीने से लथपथ घर पहुंच कर बिस्तर पर लिटाते हुए अपनी वृद्धा बहन से बोला,"अब चिन्ता की कोई बात नहीं"।हेमंत के जन्म केदो साल बाद ही उसकी पत्नी का स्वर्ग वास हो गया था तभी से बहन ने आकर घर सभाला था।
अचानक खट की आवाज ने उसका विचार भंग किया।घर मे घुसते ही हेमंत से पत्नी बोली,"जल्दी चाय पीलो फिर बाबू जी को डाक्टर यहाँ ले जाना, सीने मे दर्द से बेचैन है"।ध्यान न देने पर पत्नी ने पुनः कहा।"अरे क्या दर्द की रट लगा रखी है।पूरे दिन आफिस में खटो,फिर घर मेंं आते ही इनके दर्द सुनो,मैंं आज बहुत थक गया हूं अभी नहीं जाउंगा।कल टाइम होगा तो दिखा दूगाँ"हेमंत लगभग झुँझलाते बोला।पति का उत्तर सुन पत्नी बोली,"अगर कुछ हो गया तो"?
हेमंत बोला,"तो अच्छा है ना,रोज रोज की परेशानी से छुटकारा मिलेगा"।
बेटे के शब्दों को सुनकर वृद्ध रमन की तकलीफ कई गुना बढ़ गयी।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद 244001

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