मंगलवार, 23 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------ घड़ी न जाए बीत..


    .... बस तेजी से हल्द्वानी की ओर भागी जा रही थी परंतु राहुल को ऐसा लग रहा था जैसे बस रेंग रही हो......काश !..उसके पंख होते और वह उड़ पाता तो उड़ कर मिनटों में हल्द्वानी पहुंच जाता.....
........."दिलीप को दिल का दौरा पड़ा है,, "बस इतना ही सुना फोन पर और वह कोसों दूर है कोई मदद नहीं कर पा रहा..... वह दोस्त जिसने सुख दुख की हर घड़ी में.. अपनेपन  का सदा ही गहरा एहसास कराया था आज ....कुछ भी उसके लिए करे कम ही  होगा उसके दो छोटे छोटे बच्चे हैं .... सुंदर सजीला बदन स्वस्थ हृष्ट  पुष्ट भला उसे क्या हो सकता है मस्त मौला .....हमेशा दूसरों के काम आना जैसे उसकी आदत बन गई थी .... हे ! प्रभु कुछ ऐसा वैसा मत करना ऐसे लोग दुनिया में मिलते ही कहां हैं...?
........ राहुल की आर्थिक  स्थिति बहुत खराब थी .... जब वह सातवीं क्लास में था  पिता का स्वर्गवास हो गया था ....इंटर में दोनों दोस्त एक साथ पढ़ते थे कड़ाके की ठंड में जब राहुल के पास स्वेटर नहीं देखा तो क्लास में ही दिलीप नै अपना स्वेटर उतारा और जबरदस्ती  पहना दिया , मना करने पर बोला ,,मेरे पास जैकेट है ना इसकी जरूरत तुझे ज़्यादा है,, पापा से इसके लिए उसे डांट भी पड़ी परंतु जब पापा को पता लगा तो  उन्होने कहा ,,बड़ा प्यार है अपने दोस्त से!,,वह दिन जीवन के अंतिम क्षणों तक क्या भुलाया जा सकता है जहां इतनी बड़ी दुनिया में राहुल के इतने अपने होते हुए भी कोई साथ नहीं देता था उसे ऐसा सखा मिला...जो घरवालों की चिंता किए बिना अपना वस्त्र तक उतार कर पहना दे राहुल की आंखें भर आई,, हे प्रभु! तू मेरे प्राण ले ले!... उसे कुछ ना हो,!,....यही सोचते-सोचते पता ही नहीं चला कब वह उसके घर तक पहुंच गया ... पैर मन मन भर के भारी हो रहे थे.... दिल बैठा जा रहा था... दिलीप के आवास पर काफी भीड़ जमा थी देखते ही दिल हाहाकार कर उठा... अंदर जाकर देखा दिलीप का शरीर निश्चेष्ठ, चेतना शून्य ,ठंडा  जमीन पर पड़ा हुआ था जैसे कोई गहरी नींद में सोया हो .... पत्नी दहाड़े मार-मार कर रो रही थी दोनों बच्चे लिपट कर चिल्ला रहे थे ,,पापा उठो! पापा उठो !स्कूल छोड़कर नहीं आना है क्या, टाइम हो गया"..... राहुल के दिल में आया खूब जोर से हिलाए ... लिपट कर खूब रोये परंतु ....प्राण निकले हुए काफी समय हो गया था ....
      हफ्ता भर पहले ही तो राहुल के पास आया था ,,यार मेरे साथ चलो गाड़ी मिली हुई है,, ,,नैनीताल घूमेंगे फिरेंगे बच्चों को साथ ले लो,, मस्ती करेंगे परंतु क्या पता था कि 4 दिन में ही यह घटना घट जाएगी राहुल ने सोचा अब बनारस से यहां आ ही गये हैं तो कभी भी घूम लेंगे ....उसे बस एक ही बात खाए जा रही थी कि देखो मैंने उसका कहा नहीं माना....समय का कोई भरोसा नहीं मृत्यु का कोई पता नहीं.... एक एक पल अनमोल है जो करना है कर लो
     ......थोड़ी देर में उसे लेकर शमशान की ओर जाने लगे सब लोग सच ही कह रहे थे........,, राम नाम सत्य है !!,,,,पूरे जीवन में अब उसे कभी ऐसे व्यक्ति के दर्शन नहीं होंगे न जाने कितनी यादें जुड़ी हुई थीं... हर याद अनमोल !!
        जीवन का हर पल कीमती है इसे प्यार से जियो और सदा याद रखो मृत्यु कहीं आस-पास भी खड़ी हो सकती है ....घड़ी हाथ से निकल न जाए .... राहुल उससे अक्सर कहा करता था यह गीत नारी स्वर में है तुम क्यों गाते हो ....परंतु वह बड़ी ही सुरीली आवाज में कॉलेज के फंक्शन में हर बार यही गीत गाता था .....
.....,ये घड़ी न जाए बीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं आ लौट के आजा मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं,,
          .... दुखी मन से घर लौटते हुए राहुल की आंखें भीगी थी और यही गीत मन में चल रहा था...

✍️ अशोक विद्रोही
412 प्रकाशनगर, मुरादाबाद
82 188 2541 

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