सोमवार, 22 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की 10 कविताओं पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा----


         वाट्सएप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' की ओर से 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 20-21-22 जून 2020 को मुरादाबाद की युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट की दस काव्य रचनाओं पर  ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई ।  सबसे पहले हेमा तिवारी भट्ट द्वारा निम्न दस कविताएँ पटल पर प्रस्तुत की गईं -----
(1)

*एलबम*

नदी समय की जाये बहती।
ठहर किसी पल कभी न रहती।
न देखे कभी पीछे मुड़कर,
हर क्षण नयी कहानी कहती।

   चित्र मगर वह शिलाखण्ड है।
   समय ने जिस पर लिखा छंद है।
   दीर्घकाल तक लिखा रहेगा,
   परिवर्तन से यह स्वछन्द है।

भला वक्त यदि नहीं टिका है,
बुरा वक्त भी नहीं रहेगा।
चित्र बना ये स्मृति के पट बस,
अग्नि शिखा सा सदा जलेगा।

      यह आँकेगा व्यर्थ अहम था,
     सुख तो जल में छाया जैसा।
     दु:ख भी कहाँ रहा बलशाली,
     बदला,बदली काया जैसा।

इसीलिए हैं गये सहेजे,
सुख दुख के हर चित्र सजाकर।
यह पूंजी है जीवन भर की,
अनुभव लाया पथिक कमाकर।

(2)

*तेरे मेरे बीच*

अपरिभाषित है,
अव्यक्त है,
शब्दों के मीटर से
नापा न जायेगा,
वह बन्ध,
जो तेरे मेरे बीच है।
जितना भी रहे हम,
ख्यालों में एक दूजे के,
अपर्याप्त है,
कालातीत है,
वह वक्त,
जो तेरे मेरे बीच है।
लगता है सदियों से,
चले आ रहे हैं साथ साथ,
फिर भी चलते रहने की,
साथ साथ सदियों तक,
एक प्यास अनबुझी-सी,
तेरे मेरे बीच है|
बेरंग आंखों की चिट्ठी हो,
या थिरकती सांसों की रिंग टोन,
पढ़,सुन लेते हैं दो दिल,
ये संचार बेतार का,
आविष्कार पुराना,
अब भी....
तेरे मेरे बीच है।

(3)

*उनींदा है सूरज*

उनींदा है सूरज,
थके रास्ते हैं।
मतिभ्रम नजारे
नज़र आ रहे हैं।
घोटी हवाओं ने
भंग हर दिशा में।
नहीं फर्क दिखता,
दिवस में,निशा में।
पहरुए तमस के,
सुनो आ गये हैं।
ये बादल न बरसेंगे,
बस छा गये हैं।
भले लड़खड़ा तू,
इशारों में बतिया।
टोहते अंधेरा,
घिसटता चला जा।
समय हंसते रोते,
सभी का रहा है।
हुआ चुप जो उसको,
मिटाता रहा है।
लिखा रेत में शब्द,
कब तक रहेगा?
शिलालेख बन जा,
युगों युग पढ़ेगा।

(4)

*अन्त:करण का शव*

थक गया ढोते ढोते
मृतप्राय बोझ,
बैठ गया बीच राह
जाने क्या सोच,
वह देखने लगा है
हमराही अपने।
जो हैं थके
और भीतर से
अवसादग्रस्त।
बोझिल कदमों से घिसटते
एक बोझ लादे काँधों पर।

बोझ जो चिपटा हुआ है,
हटाये नहीं हटता।
पर वह देख रहा है,
एक आध नहीं,
पूरी भीड़ की भीड़,
उन्माद से भरी,
मुस्कुराते मुखौटे पहनकर,
लग पड़ती है दौड़ने......
अव्वल आने की होड़ में,
एक दूसरे को देखकर।

वह सोच रहा है खिन्नमना
ऐसा कैसे हो सकता है?
आखिर उन कंधों पर भी
तो लटका है
मृत अन्त:करण का शव।

(5)

*रंग के रंग*

हम देख कर यह दंग हैं।
रंग के भी कई रंग हैं।
रंग गहरा चढ़ जाता है।
रंग फीका पड़ जाता है।
रंगीन यार कोई,
रंगा सियार कोई,
कोई है उजले मन का,
पर चमड़ी का रंग काला।
कालिख किसी के मन में,
पर चेहरे पे उजाला।
मगर कुछ ऐसे भी,
जो एक ही रंग के हैं।
और कुछ बेढ़ंगे,
कई कई रंग के हैं।
कहीं महल सुनहरे हैं,
कहीं छत है आसमानी।
छप्पन रंगी कोई थाली,
बेरंग किसी को पानी।
लाल लालिमा का,
बहुतों को लहू भाया।
चूसा कहीं किसी ने,
कोई देश पे बहा आया।
धरती की चूनर धानी,
करने को कोई खपता।
सावन में हरे कंगन,
पहने कोई सँवरता।
श्वेत वस्त्र जँचते,
पर बाल भी जँचते क्या?
काजल सजे आँखों में,
पर माँग में भरते क्या?
हर रंग की यहाँ पर,
रंगीन कहानी है।
जिस रंग से मिल जाए,
उस रंग का पानी है।
रंग में विलीन होना,
कहते,नहीं गुनाह है।
पर रंग बदल लो तो,
निकलेगी दिल से आह है।

(6)

*नये साल में*

नाच रही ता थैय्या काल की करताल में।
जश्न मनाते हुए मैं,घिर गयी सवाल में।
सोचने लगी हूँ,क्या होगा नये साल में?

धरती के सीने से क्या रवि फूटेगा
या किसी निर्धन का दिल नहीं टूटेगा
खुश रह पायेगा मानव क्या फटेहाल में?
सोचने लगी हूँ क्या होगा नये साल में?

क्या प्राणी चौपाया गगन में उड़ेगा
या दिल निशंक होकर,दिलों से जुड़ेगा
क्या ये मन भोला न फँसेगा किसी जाल में
सोचने लगी हूँ क्या होगा नये साल में?

बादल का टुकड़ा क्या भू पर छायेगा
सम्भवतः नर कोई धोखा न खायेगा
जो छिपा दिल में,पढ़ेंगें क्या कपाल में
सोचने लगी हूँ क्या होगा नये साल में?

क्या वृक्ष बड़े बड़े,धावक हो जायेंगे
या पिल्ले ही सिंहशावक हो जायेंगे
जाने क्या लिख रखा है,आगत के भाल में?
सोचने लगी हूँ क्या होगा नये साल में?

(7)

*जब तक बाती है*

इस ओर से
उस ओर तक
चलना ही होगा।
जीवन को मृत्यु में
ढलना ही होगा।
उगना,अस्त होना,
फिर उग आना।
सुबह,दोपहर,
संध्या बन जाना।
कर में नहीं कुछ
रखा हुआ है,
आभिनेय वही
लिखा हुआ है।
मैं हूँ कलाकार विधि के प्रपंच का।
मैं नर्तक,मैं दर्शक रंगमंच का।
एक निष्ठुर सत्य बस मेरी थाती है,
जलना है दिये को जब तक बाती है।

(8)

*सूर्य सी ऊर्जा लिए*

   करता है रात दिन,
   वह सुपोषित मुझे,
   सूर्य सी ऊर्जा लिए।

उगता है नित्य वह,
और पार करता है,
अग्नि पथ मेरे लिए।

   ठहर कर रात भर
   क्षितिज की गोद में
   जला रहा है जो
   चाँदनी के दिए।

अंक में उसके मैं,
आँखों में उसकी मैं,
सपने सुनहरे हैं,
उसने जो बुन लिए।

   शब्दों में अवर्णित,
   बंधन सहजता का,
   प्रेम पिता का है
   शाश्वत मेरे लिए।

(9)

*रोटी और कविता*

वह देखती है
मेरी तरफ,
उम्मीदों से।
क्योंकि मैं....
लिख सकती हूँ,
रोटी।
उसने सुनी थी,
भूख पर....
मेरी शानदार रचना।
उसे कुछ समझ नहीं आया,
सिवाय रोटी के।
तब से उसकी निगाह,
पीछा करती है,
हर वक़्त मेरा।
पता नहीं क्यों,
उसे लगने लगा है,
रोटी पर लिखने वाले,
रोटी ला भी सकते हैं।
पर उसे नहीं पता
मैं खुद भी ढूँढ रही हूँ
रोटी....
इस तरह
अपने भूखे मन के लिए।
उसे देखकर मेरा मन
भर आया है।
अब नहीं करता मन,
रोटी पर लिखने का।
मैं असहाय हो गयी हूँ,
सोचती हूँ,शब्दों की पोटली से,
कविता तो निकल आयेगी,
पर रोटी......

(10)

*मुझे आरक्षण चाहिए*

रसोई के काज से,
मुझे संरक्षण चाहिए|
मैं महिला कवि हूँ,
मुझे आरक्षण चाहिए
अथवा मेरी एक पंक्ति को
सौ के सम अधिभार मिले
और मेरी तुकबन्दी को भी
ढ़ेर सारा प्यार मिले|
हर मंच पर आरक्षित मुझे
गौरव का क्षण चाहिए|
मैं महिला कवि हूँ,
मुझे आरक्षण चाहिए|
गीत लिखने से पहले,
मुझे रोटी लिखनी होती है
और चतुष्पदी मेरी
सब्जी संग भुनती रहती है|
दोहे,मुक्तक रहते बिखरे
बुहरा आँगन चाहिए|
मैं महिला कवि हूँ,
मुझे आरक्षण चाहिए|
भाव सयाने बच्चे मेरे,
रखते ख्याल हैं मेरा
निबटूँ जब चूल्हे चौके से,
सर सहलाते मेरा
वक्त पर मेरे भावों को
अनावरण चाहिए|
मैं महिला कवि हूँ,
मुझे आरक्षण चाहिए|
         
        इन कविताओं पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि "हेमा जी की रचनाएं भाव पक्ष की दृष्टि से निरंतर नयी ऊंचाइयों की ओर जा रही हैं।"
     वरिष्ठ व्यंग कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "इसमें कोई संदेह नहीं है कि हेमा तिवारी भट्ट में कविता के बीज पर्याप्त मात्रा में निवास कर रहे हैं और वह भीतर से फूट फूट कर बाहर आकर सब को ही अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं"।
      मशहूर शायरा डाॅ मीना नक़वी ने कहा कि "मुझे लगता है कि हेमा छंदबद्ध रचनाओं की अपेक्षा छंदमुक्त कविताओं में अधिक प्रभावशाली हैं"।                       मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि  “उनकी छंदमुक्त रचनाओं पर दृष्टि डाली जाती है, तो वहां एक प्रवाह दृष्टिगोचर होता है। एक लयात्मकता मिलती है, जो कविताओं को और भी रोचक बना देती है"।
      वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि "छंद मुक्त कविताओं के जरिए वे तेजी के साथ अपनी पहचान बना रही हैं। अद्भुत प्रतीकों के जरिए वह जीवन के भोगे हुए यथार्थ को उजागर करती हैं"।             मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फ़राज़ ने कहा कि "मैंने उन की रचनाओं को पढ़ा और यह जाना कि वह बारीक नज़र से संसार को पढ़ने और उसे कविता बनाने या गीत की शक्ल में गुनगुनाने का गुण जानती हैं"।
       समीक्षक डॉ मौहम्मद आसिफ़ हुसैन ने कहा कि "हेमा जी अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिए शब्दों के चयन और उनके बरतने का भरपूर सलीका रखती हैं।"
        युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि "हेमा तिवारी भट्ट के कविता लेखन में सकारात्मक शब्द शैली एवं भावनात्मकता का सटीक  सामंजस्य मिलता है"।
        युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि "प्रत्येक रचना किसी न किसी सामाजिक समस्या से जुड़ी हुई है, चाहे वह समस्या स्वयं के भीतर चल रहा द्वंद्व हो अथवा स्वयं से ऊपर उठकर शेष समाज में व्याप्त विषमताएं"।
        युवा शायर फ़रहत अली खान ने कहा कि "सभी कविताओं में शब्द रूपी धागे अपने-अपने केन्द्रीय भाव रूपी पेड़ के तनों के इर्द-गिर्द क़रीने से बाँधे गए हैं"।
        डॉ अज़ीम-उल-हसन ने कहा कि "हेमा जी 'मुझे आरक्षण चाहिए' के द्वारा वर्तमान समाज पर कटाक्ष भी करती है वहीं 'नए साल में' भविषय की चिंता भी करती हैं"।
        युवा गीतकार मयंक शर्मा ने कहा कि "छंदमुक्त रचनाएं लिखना और उनमें अपने पाठकों को बांधे रखना दुष्कर कार्य है लेकिन हेमा जी इसमें सफल हैं"।
       युवा शायरा मोनिका मासूम ने कहा कि "प्रिय हेमा न केवल अपने शब्दों के माध्यम से समाज को दिशा देती हैं अपितु अपने व्यक्तिगत रूप से भी जहां तक संभव हो सके लोगों का मार्ग प्रशस्त करती हैं"।           युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि "हेमा जी पाठकों को निरंतर कर्मशील, सकारात्मक, प्रगतिशील कालातीत होने का संदेश देती हैं"।
        ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि "इन कविताओं को पढ़कर मुझे पूरा यक़ीन है कि हेमा तिवारी भट्ट का साहित्यिक भविष्य उज्जवल है। एक अलग रंग की कवियत्री मुरादाबाद को मिल गई है।"

 ✍️ ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब"
 मुरादाबाद 244001
मो० 7017612289

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