बहू चाय बन गयी क्या....जी बाबूजी, अभी लायी, नम्रता ने जल्दी से चाय का कप बाबूजी की ओर बढ़ाया ।बाबू जी 5 बजे चाय पीते थे। उसके बाद वह अपनी दवाई लेते थे। नम्रता इस बात का हमेशा ख्याल रखती थी कि बाबू जी की चाय के समय में विलम्ब न हो जाए, वह घर में सबका ध्यान रखती थी। पति रमेश सुबह बैंक चले जाते थे तथा देर शाम तक वापिस आते थे।बड़ी बेटी अनु 12 साल की थी और बेटा अर्पित 6 साल का। कुछ वर्ष पूर्व सासु माँ का देहांत हो गया था, तब से पूरी गृहस्थी की ज़िम्मेदारी नम्रता पर आ गयी थी। माँ बाप की लाड़ली नम्रता को ससुराल में भी पूरा प्यार मिला। जब तक सासु माँ थी वह ध्यान रखती थीं कि नम्रता पर घर के काम काज का ज़्यादा बोझ न पड़े इसलिए वह उसके साथ लगी रहती थी। नम्रता ने चाहे मायक़े में काम न किया हो पर वह ससुराल में कभी काम से जी नही चुराती थी। घर का काम वह माँ जी से सीख गयी थी। माँ जी और वह मिलकर घर का सारा काम करते थे परन्तु उनके जाने के बाद सारा काम उस पर आ गया था।बाबूजी की तबियत भी ठीक नही रहती थी, इसलिए उनके खाने पीने का भी नम्रता को विशेष ध्यान रखना पड़ता था। नम्रता का पूरा दिन घर के काम में कैसे निकल जाता ,पता ही नही चलता था। नम्रता की माँ उस को कहती की कुछ दिन यहां आकर रह जा तो वह मना कर देती कि माँ सब परेशान हो जाएंगे।
एक दिन नम्रता दोपहर का काम करके बर्तन साफ़ कर रही थी कि उसकी कमर में बहुत तेज़ दर्द हुआ जैसे तैसे उसने बर्तन साफ़ किए। फिर वह अपने कमरे में आकर लेट गयी थकान के कारण उसकी आँख कब लग गयी उसे पता ही नही चला।अचानक उसकी आँख खुली तो हड़बड़ाकर उसने घड़ी देखी,5:30 बज गए थे। हे भगवान बाबूजी की चाय.............वह तेज़ी से रसोई की तरफ़ भागी वहाँ भगोने में चाय बनी रखी थी फिर उसने बाबूजी की कुर्सी के नीचे चाय का कप देखा। बाबूजी ने चाय पी ली............? पर चाय किसने बनायी, यह सोचते सोचते वह आगंन में आयी जहाँ बेटी अनु अपने छोटे भाई को पहाड़े याद करा रही थी। माँ को देखकर उसने कहा माँ आपकी चाय भगोने में रखी है और दादाजी को मैंने चाय बनाकर दे दी है। यह सुनकर नम्रता की आँखो में आँसू आ गए। उसकी बेटी कब उसका सहारा बन गयी पता ही नहीं चला। आज बेटी के प्यार के अहसास की उस चाय से नम्रता का सारा दर्द दूर हो गया।
✍️ प्रीति चौधरी
शिक्षिका, राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज, हसनपुर, जनपद अमरोहा, उ0 प्र0
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