आकाश दीप रोजाना घर के छोटे छोटे झगड़ों तंग आ गया था । कभी बड़े भाई की जली कटी बाते सुननी पड़ती, तो कभी घर के अन्य सदस्यों के व्यंग्य भरे शब्दों को सहना पड़ता ।इस वातावरण में रहते-रहते इच्छाये जैसे मर सी गई थी।बच्चों की हंसी भी आंगन को सूना कर कब की समाप्त हो चुकी थी ।
आज फिर वहीं कोहराम और तानाकशी की आवाजें तीर की भांति उसके दिल में घाव कर रही थी---आखिर कब तक ? प्रतिदिन की इस घुटन भरी जिंदगी से राहत पा ही लूँ ।इससे तो यह अच्छा है कि मैं घर से ही अलग हो जाता हूँ।
यह सोच कर वह गुस्से से उठा ही था की तभी किसी ने रसोई घर के बर्तन नीचे गिरा दिए । उस आवाज़ ने उसे पुनः हिम्मत देकर जीने का सम्बल सौप दिया ।वह शांत होकर कमरे में यह सोच कर बैठ गया , जहां कुछ बर्तन एक साथ होते हैं वहाँ खड़कन होती ही है ।
✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
मोबाइल--9411809222
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