बुधवार, 24 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा---------- मजदूर


रमेश ने घर में घुसते हुए  कहा जानकी....जल्दी से जरूरी चीजें एक थैले में रख लो  ....कल सुबह  को हमें  अपने गाँव  के लिए निकलना है। पड़ोस वाले सभी लोग जा रहे हैं ।
 जानकी ने बड़े अचरज में कहा.......... अरे.. हम कैसे जा सकते हैं.... हमारा तो बेटा बीमार है.... उसे बहुत तेज बुखार है.... और वह तो खड़ा भी नहीं हो पा रहा और आप चलने की बात कर रहे हो...... रमेश ने कहा कोई बात नहीं मैं बेटे को गोद में लेकर चलूंगा। लेकिन  अगर हम नहीं गए तो हम यहीं रह जाएंगे ।जल्दी-जल्दी सामान थैले में रख लो.....जानकी ने जल्दी-जल्दी जरूरी सामान एक थैले में भरा और अपने झोपड़ीनुमा कमरे का ताला  दिया। रमेश  ने बीमार बेटे को चादर मे लपेटकर  गोद  में उठाकर गावँ जाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में कोई सवारी ना मिलने के कारण उन्हें भरी दुपहरी में पैदल ही चलना पड़ा । चलते-  चलते दो दिन हो गए थक- हारकर हो एक पेड़ के नीचे बैठ गये। रमेश ने देखा की बेटे की साँस बहुत रुक- रुक कर आ रही है... उसे चिंता होने लगी परंतु उसने अपनी चिंता को जाहिर नहीं होने दिया। और बेटे को गोद में दोबारा लेकर चल पड़े ।अभी कुछ दूर ही चले होंगे ....कि कुछ समाजसेवी लोगों ने खाना देने के लिए उन्हें रोक लिया। खाना लेकर खाने ही बैठे तभी रमेश को लगा कि उसका बेटा  अब इस दुनिया में नहीं है ....उससे  रोटी का एक  भी टुकडा भी नही खाया गया। जानकी ने रमेश से कहा कि बेटे को भी कुछ खिला देते हैं... जानकी ने बेटे को कुछ खिलाने के लिए जैसे ही मुँह से कपड़ा हटाया और रोटी का टुकड़ा खिलानें लगी...बेटा का मुहँ नही खुल रहा था...और उसकी गर्दन एक तरफ लुढ़क गई... ...यह देख कर जोर-जोर से चीखनें लगी ......और बेटे को सीने से लगाकर लिपट -लिपट कर रोनें लगी .....हाय मेरा बच्चा अब इस दुनिया में नहीं रहा ....अब मैं कैसे जिन्दा रहूँगी....... उसकी चीखों ने  बहुत दूर-दूर तक मानवता को दहला दिया।

✍️ स्वदेश सिंह
 मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश

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