मदर्स डे मनाने के लिये पंद्रह वर्ष के सौरभ ने अपने पापा से कुछ रुपये लिये और बाज़ार से एक सुंदर सा गिफ्ट लाकर अपनी माँ " मोना "को आज मदर्स डे पर भेंट करते हुए कहा",हैप्पी मदर्स डे!! डियर मम्मा..!!"
"ओहहहहह, थैंक्स बेटा!!"
मोना ने गिफ्ट लेकर,मुस्कुरा कर सौरभ का माथा चूमते हुए कहा। यह देखकर बरामदे में बैठकर धार्मिक पुस्तक पढ़ते हुए सौरभ के बूढ़े दादा ने पूछा,"बेटा आज तुम्हारी माँ का जन्मदिन है क्या ? यह उपहार किसलिए.......?"
"नहीं दादू...वो आज..मदर्स डे है न,!!..
मतलब आज का दिन माँ के नाम......।"
" ओहहहहह...!! अच्छा.. !अच्छा.."!दादू ने मुस्कुराते हुए कहा।
"हुँहहह...!!अरे बेटा...किन्हें बता रहे हो ?पहले के लोग बहुत गँवार होते थे।उन लोगों को मदर्स डे और फादर्स डे का क्या पता...!"सौरभ की बात पूरी होने से पहले ही मोना मुँह बिचकाती हुई बोली।
यह सुनकर बूढ़े दादू चश्मा उतारकर एक गहरी साँस भरकर .. शून्य में देखते हुए बोले,"सही कह रही हो बहू....!पहले के लोग गँवार ही तो होते थे...।बचपन में बस एक बार श्रवण कुमार की कहानी सुन ली थी....उसके बाद से फिर कभी अम्मा और पिताजी के लिये अलग से कोई दिन मनाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी.....सचमुच गँवार ही रहे हम...।"इतना कहकर बूढे दादू रहस्यमयी हँसी हँसते हुए चश्मा लगाकर फिर से पुस्तक पढ़ने में व्यस्त हो गये ।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद
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