बुधवार, 24 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ---इंसान तो हूँ ?

            पत्नी ने पति से कहा, ''आज रात मैने स्वप्न में देखा कि आप प्रदेश के बहुत बड़े आदमी बन गए हैं ।आपके चारों ओर भीड़ ही भीड़ है ।तभी मैने देखा कि एक मकान में आग लग गई।फिर पता नहीं क्या हुआ की आप उस आग में कूद पड़े और -----------!''
       '' हाँ ! हाँ ! ठीक है बाद में क्या हुआ ?"
       "बस कुछ नहीं ,मेरी आँख खुल गई"
     देखती हूँ तुम वहीं के वहीं हो मुफलिसी के मारे चारपाई पर पड़े निःसहाय नोकरी के लिए जूझते तिल -तिल कर मरने वाले बेसहारा इंसान--।"
     ''ठीक है ! ठीक है!मैं एक इंसान तो हूँ न ।आज के युग में कोई इंसान ही बना रहे यही क्या कम है ?"
       पत्नी ने पति को बहुत ही गर्व से देखा और फिर स्नेहवश उसके सीने से लग गई ।
 ✍️  अशोक विश्नोई
  मुरादाबाद
 मोबाइल--9411809222


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