रविवार, 2 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम के दस नवगीतों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा----



 वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत  दिनांक 1 व 2 अगस्त को मुरादाबाद के चर्चित  नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम की रचनाधर्मिता पर ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा का आयोजन किया गया । सबसे पहले योगेंद्र वर्मा व्योम द्वारा निम्न दस नवगीत पटल  पर प्रस्तुत किये गए

(1)

जीवन में हम ग़ज़लों जैसा
होना भूल गए

जोड़-जोड़कर रखे क़ाफ़िये
सुख-सुविधाओं के
और साथ में कुछ रदीफ़
उजली आशाओं के
शब्दों में लेकिन मीठापन
बोना भूल गए

सुबह-शाम के दो मिसरों में
सांसें बीत रहीं
सिर्फ़ उलझनें ही लम्हा-दर-
लम्हा जीत रहीं
लगता विश्वासों में छन्द
पिरोना भूल गए

करते रहे हमेशा तुकबंदी
व्यवहारों की
फ़िक्र नहीं की आँगन में
उठती दीवारों की
शायद रिश्तों में ग़ज़लियत
संजोना भूल गए

(2)

मैंने बूँदों को अक्सर
बतियाते देखा है

इठलाते बल खाते हुए
धरा पर आती हैं
रस्ते-भर बातें करती हैं
सुख-दुख गाती हैं
संग हवा के खुश हो
शोर मचाते देखा है

कभी झोंपड़ी की पीड़ा पर
चिंतन करती हैं
और कभी सूखे खेतों में
खुशियाँ भरती हैं
धरती को बच्चे जैसा
दुलराते देखा है

छोटा-सा जीवन है लेकिन
काम बड़ा करतीं
सूनी आँखों में उजली-सी
आशाएँ भरतीं
तक़लीफ़ों को सहकर भी
मुस्काते देखा है

(3)

तन के भीतर बसा हुआ है
मन का भी इक गाँव

बेशक छोटा है लेकिन यह
झांकी जैसा है
जिसमें अपनेपन से बढ़कर
बड़ा न पैसा है
यहाँ सिर्फ़ सपने ही जीते
जब-जब हुए चुनाव

चौपालों पर आकर यादें
जमकर बतियातीं
हँसी-ठिठोली करतीं सुख-दुख
गीतों में गातीं
इनका माटी से फ़सलों-सा
रहता घना जुड़ाव

चंचलता की नदी पास में
इसके बहती है
जो जीवन को नई ताज़गी
देती रहती है
बाढ़ कभी जब आती इसमें
उगते बहुत तनाव

(4)

चलो करें कुछ कोशिश ऐसी
रिश्ते बने रहें

रिश्ते जिनसे सीखी हमने
बोली बचपन की
सम्बन्धों की परिभाषाएँ
भाषा जीवन की
कुछ भी हो, ये अपनेपन के
रस में सने रहें

बंद खिड़कियाँ दरवाज़े सब
कमरों के खोलें
हो न सके जो अपने, आओ
हम उनके हो लें
ध्यान रहे ये पुल कोशिश के
ना अधबने रहें

यही सत्य है ये जीवन की
असली पूँजी हैं
रिश्तों की ख़ुशबुएँ गीत बन
हर पल गूँजी हैं
अपने अपनों से पल-भर भी
ना अनमने रहें

(5)

अब तो डाक-व्यवस्था जैसा
अस्त-व्यस्त मन है

सुख साधारण डाक सरीखे
नहीं मिले अक्सर
मिले हमेशा बस तनाव ही
पंजीकृत होकर
फिर भी मुख पर रहता
खुशियों का विज्ञापन है

गूगल युग में परम्पराएँ
गुम हो गईं कहीं
संस्कार भी पोस्टकार्ड-से
दिखते कहीं नहीं
बीते कल से रोज़ आज की
रहती अनबन है

नई सदी नित नई पौध को
रह-रह भरमाती
बूढ़े पेड़ों की सलाह भी
रास नहीं आती
ऐसे में कैसे सुलझे जो
भीतर उलझन है

(6)

अब संवाद नहीं करते हैं
मन से मन के शब्द

एक समय था, आदर पाते
खूब चहकते थे
जिनकी खुशबू से हम-तुम सब
रोज़ महकते थे
लगता है अब रूठ गए हैं
घर-आँगन के शब्द

हर दिन हर पल परतें पहने
दुहरापन जीते
बाहर से समृद्ध बहुत पर
भीतर से रीते
अपना अर्थ कहीं खो बैठे
अपनेपन के शब्द

आभासी दुनिया में रहते
तनिक न बतियाते
आसपास ही हैं लेकिन अब
नज़र नहीं आते
ख़ुद को ख़ुद ही ढँूढ रहे हैं
अभिवादन के शब्द

(7)

अपठनीय हस्ताक्षर जैसे
कॉलोनी के लोग

सम्बन्धों में शंकाओं का
पौधारोपण है
केवल अपने में ही अपना
पूर्ण समर्पण है
एकाकीपन के स्वर जैसे
कॉलोनी के लोग

महानगर की दौड़-धूप में
उलझी ख़ुशहाली
जैसे गमलों में ही सिमटी
जग की हरियाली
गुमसुम ढ़ाई आखर जैसे
कॉलोनी के लोग

ओढ़े हुए मुखों पर अपने
नकली मुस्कानें
यहाँ आधुनिकता की बदलें
पल-पल पहचानें
नहीं मिले संवत्सर जैसे
कॉलोनी के लोग

(8)

बीत गया है अरसा, आते
अब दुष्यंत नहीं

पीर वही है पर्वत जैसी
पिघली अभी नहीं
और हिमालय से गंगा भी
निकली अभी नहीं
भांग घुली वादों-नारों की
जिसका अंत नहीं

हंगामा करने की हिम्मत
बाक़ी नहीं रही
कोशिश भी की लेकिन फिर भी
सूरत रही वही
उम्मीदों की पर्णकुटी में
मिलते संत नहीं

कैसे आग जले जब सबके
सीने ठंडे हैं
आग जलाने वालों के
अपने हथकंडे हैं
आम आदमी के मुद्दे अब
रहे ज्वलंत नहीं

(9)

मौन को सुनकर कभी देखो
रूह भीतर गुनगुनाती है
ज़िन्दगी का गीत गाती है

झूठ के सुख-साधनों को तज
छल-भरे आश्वासनों को तज
रोग बनते जा रहे हैं जो
शोर के विज्ञापनों को तज
मौन को चुनकर कभी देखो
रूह भीतर खिलखिलाती है
ज़िन्दगी का गीत गाती है

दृष्टि में थोड़ा खुलापन ले
इन्द्रधुषी कुछ नयापन ले
बालपन-सी ताज़गी के सँग
सोच में थोड़ा हरापन ले
मौन को बुनकर कभी देखो
रूह भीतर चहचहाती है
ज़िन्दगी का गीत गाती है

बंदिशें सब तोड़ बंधन की
साजिशें सब छोड़ उलझन की
गंध डूबे शब्द कुछ लेकर
तुम कभी आयत बनो मन की
मौन को गुनकर कभी देखो
रूह भीतर मुस्कुराती है
ज़िन्दगी का गीत गाती है

(10)

आज सुबह फिर लिखा भूख ने
ख़त रोटी के नाम

एक महामारी ने आकर
सब कुछ छीन लिया
जीवन की थाली से सुख का
कण-कण बीन लिया
रोज़ स्वयं के लिए स्वयं से
पल-पल है संग्राम

वर्तमान को लील रहा हरदम
भय का दलदल
और अनिश्चय की गिरफ़्त में
आने वाला कल
सन्नाटे का शोर गढ़ रहा
भीतर प्रश्न तमाम

ख़ाली जेब पेट भी ख़ाली
जीना कैसे हो
बेकारी का घुप अँधियारा
झीना कैसे हो
केवल उलझन ही उलझन है
सुबह-दोपहर-शाम

इन नवगीतों पर चर्चा करते हुए विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि कोलाहल से गुजरते हुए जब हम उनकी रचनाशीलता के आग्रहों की ओर ध्यान देते हैं तो पता चलता है कि निजता से लेकर व्यापक सामाजिक सरोकारों की धरती से जो निरंतर अनुपस्थित होते जा रहे हैं उन जीवन मूल्यों ,परस्पर संबंधों की गाँठ से ढीले होकर छूटते या सरकते रिश्तों की अकुलाहट भारी टीस उनके कथ्य में शामिल हैं इस तरह वे अपनी अभिव्यक्ति के दायरे को बड़ा करते जाते हैं। जीवन में गहरी संवेदनात्मकता का क्षरण उनके गीतों की वस्तु चेतना में शामिल है। यह पहले गीत से लेकर दसवें गीत तक में ही नहीं बल्कि उनके समूचे लेखन के केंद्र में है। उनके लिए रचना भी एक प्रार्थना है, पूजा है इसलिए बासी फूलों की टोकरी अलग खिसका कर ताजा फूलों का प्रयोग करते हैं। व्योम सर्वथा मौलिक चिंतन के रचनाकार हैं और हिंदी नवगीत में मुरादाबाद के उजली पाँत की संभावना हैं।
आलमी शोहरत याफ्ता शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि मुझे नवगीत जितना भी पढना सुनना और समझना आता है उस कसौटी पर व्योम की रचनाएं मुझे बेहद आकर्षित करती हैं क्योंकि मेरे नजदीक व्योम पूरी तरह मानवतावादी कवि हैं, इंसानी सोच उसके दुख-सुख उसकी आवश्यकतायें और अपेक्षाएं व्योम की रचनात्मक सोच का केंद्र बिंदु रहती हैं वह कल्पनाओं से ज्यादा हकीकतों के कवि हैं जो उन्हें अपने बडों के बीच स्थापित करता है।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर  ने कहा कि व्योम के कवि मन को जो वेदना निरंतर मथती रहती है, वह है आज के संबंधों में सहजता का अभाव. कभी वह उसे ग़ज़ल की मिठास तो कभी बूंदों द्वारा अपने छोटे से जीवन में बड़े काम करने से व्यक्त करते हैं. कभी मन के भीतर बसे गाँव से तो कभी संस्कारों के विलुप्त होने से, अपनत्व रहित संवादों अथवा कोलोनी के कृत्रिम जीवन से तुलना करके व्यक्त करते हैं। अंतिम नवगीत वैश्विक संकट से उत्पन्न स्थिति में श्रमजीवी जैसे सबसे निचले स्तर के व्यक्ति की वेदना को उकेरा है। दुष्यंत कुमार के स्मृति गीत के माध्यम से उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप समाज में जागृति न आ पाने पर कवि का क्षोभ व्यक्त हुआ है। इन गीतों जैसे मानवीकरण के सुंदर सटीक उदाहरण एक साथ कम ही मिल पाते हैं ।
विख्यात व्यंग्य कवि  डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि व्योम नवगीत विधा में चर्चा पाकर अपना स्थान बना चुके हैं। उनके कोंपलों जैसे ताजा नवगीत सकारात्मक सोच और कड़वाहट को मिठास के साथ परोसने के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। यह मुश्किल कार्य उनसे हुआ इसके लिए पहले ही बधाई। ऐसे समर्थ रचनाकार पर कुछ कहने के लिए गीत और नवगीत को समझना आवश्यक है। योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' की मीठी भाषा, शिल्प की तराश, कथ्य में जन भागीदारी, बिंबों का अनूठापन कहन के माधुर्य से गीत के सौंदर्य को उच्चता की ओर ले जा रहा है।
वरिष्ठ कवि  डॉ अजय अनुपम ने कहा कि आज पटल पर श्री योगेन्द्र वर्मा व्योम जी के दस गीत पढ़े। विस्तृत विचार और खुली सोच के गीत। रचनाकार के मन में पहले एक विचार उमड़ता है और उसमें से गीत का स्वरूप उभरता है। गीत का शाब्दिक अर्थ ही है कि जो गाया जा चुका है। व्योम जी के गीत भाषा और कथ्य में समकालीन परिवेश की पूरी तस्वीर उतारने में समर्थ हैं। विस्तृत विचार और खुली सोच के गीत हैं।
मशहूर शायरा डॉ मीना नकवी ने कहा कि व्योम से एक लम्बे समय से परिचय है और अनेकानेक बार उन्हें सुना भी है और पढ़ा भी है। व्योम नवगीत के सशक्त कवि हैं। सामाजिक संबंधों की असहजता उन्हे व्याकुल रखती है। सामजिक परिवेश की उथल पुथल को जब वह डाक व्यवस्था से सटीक उपमा देते हैं तो मन विस्मित हो जाता है। कुल मिला कर व्योम समय, संबधो के सकारात्मक  और सशक्त कवि हैं।
मशहूर शायर  डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा कि योगेंद्र ‘व्योम जी के गीतों में प्रयोगशीलता तो है, लेकिन मनमानापन नहीं। व्योम जी आज देशभर में नवगीत के क्षेत्र में अपना वह मुक़ाम पा चुके हैं, जो बहुत कम लोगों का मुक़द्दर होता है। उनके यहाँ प्रत्येक भाषा के बहुप्रचलित शब्द आसन जमाये विराजमान होते हैं। बिंब बहुत साफ़-सुथरे और आम आदमी की पहुँच में आने वाले होते हैं।
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फराज  ने कहा कि कागज़ पर सजे हुए 'व्योम' के नवगीत हमारे सामाजिक जीवन का अक्स हैं। ये नवगीत शायरी के उस नाज़ुक एहसास को दर्शाने के लिए साधारण अल्फ़ाज़ का लिबास पहनते हैं जहाँ बारिश की बूंदों की बाते भी सुनी जाती हैं और उस पीड़ा को भी एक हस्सास शायर ही महसूस कर सकता हैं जो बारिश से झोपड़ियों और उसके रहने वालों को होती हैं।'व्योम' के नवगीत मन के तारों को छेड़ते भी है और मस्तिष्क के तारो को झंझोड़ते भी हैं।
वरिष्ठ कवि  डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित कर चुके योगेंद्र वर्मा व्योम के मन के गांव में बसी भावनाएं जब शब्दों का रूप लेकर नवगीत, ग़ज़ल और दोहों के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं तो वह अपने पाठकों / श्रोताओं की सोच को  झकझोर देती हैं। उनके नवगीत जिंदगी के विभिन्न रूपों के गीत हैं जो हम से बतियाते हैं और हमारे साथ खिलखिलाते भी हैं। उन्हें पढ़/ सुनकर हमारा अस्त व्यस्त मन कभी गुनगुनाने लगता है तो कभी चहचहाने लगता है तो कभी निराशा और हताशा के बीच आशाओं के दीप जलाने लगता है।
प्रसिद्ध कवियत्री डॉ पूनम बंसल ने कहा कि आदरणीय व्योम जी नव गीत के सशक्त हस्ताक्षर हैं उनके गीतों में जहाँ सामाजिक विद्रूपताओं का सजीव चित्रण है वहीं मानवीय संवेदनाएं उनके गीतों का आधार हैं। सरल सहज शब्दों में वर्तमान परिवेश की हलचल को उजागर करना उनके गीतों की विशेषता है सच्चे अर्थों में उनकी रचनाएं समाज का दर्पन हैं। उनकी अनुपम रचनाधर्मिता के प्रति हृदय से साधुवाद माँ शारदे की कृपा व्योम जी पर यूँ ही बरसती रहे।
वरिष्ठ कवि  शिशुपाल मधुकर ने कहा कि व्योम जी बहुत ही मृदुभाषी मिलनसार तथा व्यवहारिक व्यक्ति हैं। सबका सहयोग करना उनके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण गुण है। मैं उनके लेखन से करीब 30 वर्षों से परिचित हूं। व्योम जी अत्यंत संभावनाशील व उत्कृष्ट रचनाकार है जो बदलते परिवेश में स्वयं को ढालने में सिद्ध हस्त हैं।मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है कि वे नवगीत की और उचाइयों को अवश्य छुएंगे।
प्रसिद्ध समीक्षक  डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मुरादाबाद वासियों को गर्व होना चाहिए की हमारे शहर के अग्रिम पंक्ति के नवगीतकारों में आदरणीय योगेंद्र वर्मा व्योम जी का नाम भी शामिल है। योगेंद्र वर्मा व्योम जी के नवगीत केवल कहन भर  नहीं  बल्कि  सामाजिक  चेतना  के  सूत्रधार  भी  प्रतीत  होते  हैं।
युवा शायर  राहुल शर्मा ने कहा कि व्योम जी इतनी खूबसूरती से, बड़ी बारीकी से ऐसे ऐसे बिंब, प्रतीक और प्रतिमान ढूंढ लाते हैं जिस पर सामान्य गीतकार दृष्टिपात नहीं कर पाते। व्योम जी चीजों को रूपांतरित करने में सिद्धहस्त हैं। मन को गांव की संज्ञा में रूपांतरित कर देने जैसा प्रयोग पहले कभी कहीं देखने को नहीं मिलता। रूपांतरित कर देने के पश्चात रूपांतरण के मानकों का सटीक उपयोग करना बहुत ही कुशलता का कार्य है।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि नवगीत अगर गीत की रिवायत को जदीदियत(आधुनिकता) का नया रंग देने का नाम है तो व्योम जी के नवगीत इस की अच्छी मिसाल हैं। ज़ाहिर है कि 'नया' कुछ नहीं होता बल्कि 'पुराने' का ही वर्तमान के आइने में नज़र आने वाला अक्स होता है। आप ने विषयों के तौर पर समाज के अंदर-बाहर के छोटे-बड़े पहलुओं को जिस तरह से चुन-कर, उन में निहित जज़्बात और उन से पैदा होने वाले असरात को आम-फ़हम शब्दों से बुन-कर सामने रखा है, वो क़ाबिल-ए-दाद है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि तमाम संवेदनाओं को समेटे उनकी रचनाएं पाठकों व श्रोताओं से सीधी व सरल भाषा-शैली में वार्ता करती प्रतीत होती हैं। उनसे मुझ अकिंचन को भी भरपूर स्नेह व मार्गदर्शन मिलता रहा है। देश के श्रेष्ठ नवगीतकारों में से एक की रचनाओं का आज पटल पर आना हम सभी के लिए हर्ष का विषय है। निश्चित ही साहित्य-जगत में और अनेक ऊँचाईयाँ बाहें फैलाए आदरणीय व्योम जी की प्रतीक्षा कर रही हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि हम सभी उन ऐतिहासिक क्षणों के प्रत्यक्षदर्शी बन सकें।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि आदरणीय व्योम जी के प्रस्तुत गीतों की करें, तो ये सभी कल्पनाओं के व्योम से यथार्थ की जमीन पर उकेरे गए शब्दों के संयोजन हैं। व्योम जी के सभी नवगीत उत्कृष्ट साहित्य की बानगी भर हैं। इस व्योम में ऐसे असंख्य तारे हैं। मुझे विश्वास है कि उनकी चमक भी हम तक ऐसे ही किसी माध्यम से ज़रूर पहुँचेगी।
युवा समीक्षक डॉ अजीम उल हसन ने कहा कि व्योम जी के सभी नवगीत एक से बढ़ कर एक हैं। भाषा अत्यन्त सरल एवं व्यावहारिक है जिससे गीतों को पढ़कर मन बोझिल नहीं होता बल्कि सहजता से ये नवगीत मन में उतरते चले जाते हैं। कहने को तो ये नवगीत है परंतु इनकी जड़े हमारी प्राचीन भारतीय सभ्यता तथा परम्पराओं से जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि व्योम जी निस्संदेह नवगीत की डगर पर सधे हुए कदमों से निरन्तर आगे बढ़ रहे हैं। उनके गीत मन को छूते हैं और समसामयिक विषयों पर गहरे तक झकझोरते भी हैं। व्योम जी को मैं एक मिलनसार, सहयोगी, हितैषी, मार्गदर्शक बड़े भाई के साथ साथ एक संवेदनशील, अध्ययनशील, साहित्य के प्रति जिज्ञासु और समर्पित व्यक्तित्व के रूप में जानती हूँ। मैं आश्वस्त हूँ कि हमारे मुरादाबाद से बड़े भाई श्री योगेन्द्र वर्मा व्योम जी निकट भविष्य में नवगीतकारों की उस पंगत में शामिल होंगे, जो साहित्य के इतिहास में स्वर्णिम आभा बिखेरने वाले हैं।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर  जिया जमीर ने कहा कि योगेंद्र वर्मा व्योम उन रचनाकारों में से हैं जिन्होंने कविता से अपना साहित्यिक सफ़र शुरू किया और फिर नवगीत के आकर्षण में बंध कर नवगीत की तरफ आ गए। नवगीत की तरफ वो रचनाकार ही आता है जिसे बेड़ियां तोड़ने की ख्वाहिश होती है। व्योम जी की परवरिश उनकी रचनाओं, उनके गीतों में साफ़ दिखाई देती है। वो रिश्तों की पासदारी में यकीन रखते हैं। रिश्तों को निभाना चाहते हैं। आख़िरी दम तक रिश्ते तोड़ना नहीं चाहते। तभी तो अपनी नवगीतों की किताब का नाम उन्होंने 'रिश्ते बने रहें' रखा। नवगीत होने के बावजूद इन गीतों में जो गहराई, जो ठहराव और शब्दों के चयन और उनका पंक्ति में फैलाने का जो सलीक़ा है, वह किसी भी तरह इन नवगीतों को परंपरागत गीत के स्तर से कम नहीं होने देता।

:::::::::प्रस्तुति:::::::::
-ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब"
 मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मो० 7017612289

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