शनिवार, 28 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ जगदीश शरण का व्यंग्य -------चुनाव: एक प्रत्याशी की भावभीनी प्रार्थना

   


  "हे आदरणीय मतदाताजी ! मेरे प्रभु ! हे मेरे भाग्य-विधाता ! अन्नदाता ! मेरे परिवार के रक्षक ! हे मेरी तकदीर के निर्माणकर्ता ! मैं तुमसे पूरे पाँच साल दूर रहा । तुमसे मिलने का औसर ही न मिला । तुम जानते हो, प्रभु ! इस लम्बे गैप में मेरे दिल पर क्या बीती ? एक-एक पल तुमसे मिलने को आतुर रहा; पर कमबख्त इस शरीर में घुसे पंचविकारों ( काम, क्रोध, माया, मद, मत्सर ) ने तुमसे मिलने न दिया । जब भी तुमसे मिलने का प्रयास करता, ससुरा 'काम'  रोक लेता । वैसे, मैंने समाज में 'काम' खूब किया । इस 'काम' में मैंने, सच पूछो तो, न छोटा देखा न बड़ा । आयु, लिंग व धर्मनिरपेक्ष रहा तथापि 'काम-वृत्ति' और 'निवृत्ति' के परस्पर द्वन्द्व से उपजे 'क्रोध' को कुछ कम करने का सद्प्रयास करता तो 'माया' के 'जम-जाल' में फँस जाता । कबीर के लिखेनुसार, 'माया'  "महाठगिनी'' तो है पर ससुरी को खुद हमने ही ठग लिया । हम 'महाठग' जो ठहरे ! अपने 'परमपद'  के 'परममद' ( तीव्र अहंकार ) में कमबख्त हम इतने 'मत्सरी' ( लालची ) हो गये कि स्वदर्शन में मगन हम तुम्हारे दर्शनों से चिरलाभान्वित होने के बजाय चिरवंचित होकर चिरनुकसानन्वित हो गये ! किन्तु , हे परन्तप ! मैं अब इन पंच चोरों से मुक्त होकर तुम्हारी शरण में आया हूँ ।

   "हे मेरी पंचवर्षीय कुसफलीभूत कुयोजना के निर्माता ! पूरे पाँच साल बाद मैं तुम्हारे दर्शन करने आया हूँ । अपने आराध्य के दर्शनों की इतनी लम्बी अवधि के उपरान्त अपने भक्त के हृदय में छिपी गहरी लालसा को तो तुम समझते ही हो, प्रभु ! संसार जानता है कि तुम कितने गुणी हो और मैं कितना अवगुणी ! बार-बार गलतियाँ करने पर भी तुम मुझे छिमा कर देते हो । तुम कितने दयालु हो ! बस, एक बार और छिमा कर दो, भगवन् !

  "अंई....क्या कहा, प्रभु ? छिमा कर दिया ? ओह, धन्य हो तुम ! धन्य है तुम्हारी महादयालुता और धन्य है तुम्हारा महाज्ञान ! !


 ✍️ डॉ. जगदीश शरण

 डी- 217, प्रेमनगर, लाइनपार, माता मंदिर गली, मुरादाबाद-- 244001, उत्तर प्रदेश ,भारत

मोबाइल :  983730 8657  

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