सुबह-सुबह घूमने निकले कुछ लोग यकायक बच्चे के रोने की आवाज़ सुनकर ठिठके और कुछ पल रुक कर रोती हुई आवाज़ का सच जानने के प्रयास में उस ओर दौड़े जहां से आवाज़ आ रही थी।उन्होंने देखा कि एक जालीदार टोकरी में एक नवजात बच्ची रोए जा रही है।अरे कोई लड़की लोक लाज के डर से इस बच्ची को यहाँ छोड़कर चली गई है।सबने बारी-बारी से अपनी प्रतिक्रिया तो व्यक्त की परंतु उस बच्ची को उठाकर उसके जीवन को बचाने की कोशिश नहीं की।
किसी ने कहा लड़का होता तो हम ही रख लेते, किसी ने कहा क्या पता किस धर्म जाति की है।किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया और अपनी राह हो लिए।वह बच्ची इसी प्रकार भूखी-प्यासी रोती रही ज्यादा भूख लगती तो अपने हाथ की उंगलियों को ही चूसकर शांत हो जाती।
दिन चढ़ते चढ़ते काफी लोग इकट्ठा हो गए लेकिन उसे किसी ने प्यार से गोदी में नहीं उठाया।बात फैली तो एक बड़े घर की महिला वहां आई और उसने उस बच्ची को गोदी में उठाकर उसके ऊपर लगे कूड़े कचरे को हटाया और एक साफ तौलिया में लपेटकर उसे पहले बाल चिकित्सालय ले गई।वहाँ उसका पूरा स्वास्थ्य परीक्षण कराने के बाद उसे पास के थाने लेजाकर उसे अपने साथ रखने की प्रक्रिया की जानकारी की।अंततः अनाथालय के माद्यम से बच्ची को घर ले जाने में सफलता हासिल की।
जब काफी समय बीतने पर भी उसे लेने कोई नहीं आया तो महिला ने उसकी अच्छी परवरिश में दिन-रात एक कर दिए।बच्ची का नामकारण भी बड़ी धूम-धाम से किया गया।सभी उसे ज्योति कहकर पुकारते।बच्ची धीरे -धीरे बड़ी होती गई।खूब पढ़ लिखकर योग्य चिकित्सक बनी।
वह अपनी मां का बहुत ध्यान रखती।एक दिन मां ने उसे सत्य से अवगत कराते हुए कहा बेटी यह संसार बड़ा विचित्र है।यहां लोग सिर्फ अपने फायदे के बारे में ही सोचते हैं।तू अगर लड़का होती तो मुझे कैसे मिलती।लड़के के ऊपर किए गए खर्चे की तो पाई पाई वसूल कर लेते।तेरे ऊपर लगाए पैसे तो उनके लिए व्यर्थ ही जाते।
तू मेरी आँखों की ज्योति है और मेरी हारी-बीमारी में मेरी चिकित्सक भी। ईश्वर तुझे शतायु करे।यह सुनकर बिटिया मां से लिपट कर बोली तुम तो ईश्वर की साक्षात प्रतिमा हो माँ।
✍️वीरेन्द्र सिंह बृजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,
मो 9719275453
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