शनिवार, 14 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की ग़ज़ल ----इक दिया जलाओ तुम एक मैं जलाऊँगा , "आएगी नज़र सबको रोशनी चिराग़ों की"


दिल को मोह लेती है रोशनी चिराग़ों की ,

क्या किसी ने देखी है तीरगी चिराग़ों की !

सबको रास आती है रोशनी चिराग़ों की ,

दोस्तो ! बचा लीजे ज़िंदगी चिरागों की !

रात के अँधेरे में ज़िंदगी न खो जाये ,

इसलिए ज़रूरी है ज़िंदगी चिराग़ों की !

हो चमक सितारों की या कि बिजलियाँ दमकें ,

हर किसी पे भारी है सादगी चिराग़ों की !

इक दिया जलाओ तुम एक मैं जलाऊँगा ,

"आएगी नज़र सबको रोशनी चिराग़ों की" !

मुश्किलें ज़माने की सब क़बूल हैं मुझको ,

सह न पाऊँगा लेकिन बेरुख़ी चिराग़ों की !

इल्म के चिराग़ों की बात ही निराली है ,

रोशनी से भरती है बात भी चिराग़ों की !

इक झलक फ़क़त जिसकी तीरगी-1मिटाती है ,

रोशनी-सी लगती है बात भी चिराग़ों की !

हर जगह अँधेरों की आजकल सियासत है , 

सिर्फ़ बात होती है हर घड़ी चिराग़ों की !

प्यार के उजाले ही हर जगह रहें 'ओंकार' , 

आँगनों में हो सबके रोशनी चिरागों की !

तीरगी = अँधेरा

✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी-241 बुद्धिविहार , मझोला ,

मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश ) 244103

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