आती जाती हवायें कह रहीं,अब बहार आने को है
बिगड़ गये जो रंग ढंग उनके ,अब सुधार आने को है
समझ गये वह क्या छूटा है क्या खो दिया क्या पाया
छोड़ दिया है लेना देना समानाधिकार पाने को है
समय कभी न होता किसी का कभी जीत तो है हार कभी
पहचान लिया है बुरे समय को अब करार लाने को है
खामोशी भरी उनकी निगाहें गवाहियां दे रहीं सुनो
लूटा चैन करार हमारा तो वह उधार चुकाने को है
संयम नियम सभी सुधरेंगे जिनसे भटका हुआ था मन
पदचिन्हों पर चल गुरुजी के सागर पार आने को है
✍️ जया शर्मा , लखनऊ
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