बुधवार, 25 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी ( जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार डॉ मूलचंद्र गौतम का व्यंग्य -----अथ श्री गमछा माहात्म्य

 


वेद की करतल भिक्षा तरुतल वास की करपात्री संस्कृति से ही गमछा सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है ।शंकर जी का बाघम्बर और ऋषि मुनियों की मृगछाला गमछे के ही आदि रूप हैं।या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर कौ तजि डारौं की कामरिया गमछे का ही विराट रूप है ।
इसी तर्ज पर कलिकाल में गिरिधर कविराय की सलाह पर   गमछे के साथ लाठी भी जुड़ गयी।गांधीजी ने भी इसी के चलते लाठी को अपने व्यक्तित्व का अनिवार्य अंग बना लिया था ।बाद में बंजी वालों ने इसमें झोला और जोड़ दिया ,  लेकिन फिर भी गमछा भारतीय ग्राम जीवन का अपने आप में आत्मनिर्भर तत्व है जिसे कहीं कहीं अँगोछा भी कहा जाता है ,तौलिया उर्फ टॉवल इसी का शहरी आभिजात्य रूप है बाजरे की कलगी की तरह ।
प्रधानमंत्री ने कोरोना काल में पूरे विश्व में भइयों की स्थायी पहचान बन चुके  गमछे को सुरक्षा कवच की तरह धारण करके इसके सेंसेक्स को आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया है ।अब पूरा विश्व समुदाय वायरस के खिलाफ इसे मास्क से बेहतर और सस्ता सुरक्षित उपाय मान चुका है ।बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनियों ने इसके उत्पादन और निर्यात के प्रबंध कर लिये हैं।लोकल ने ग्लोबल को मैदान में पछाड़ दिया है।
जिन्हें पुराने जमाने की बगीचियों की सांयकालीन दिनचर्या की थोड़ी भी याद बाकी है उन्हें मालूम है कि पहलवान और भंगड़ी वहाँ नियमित रूप से मिलते थे ।लंगोट से मुक्त होकर लाल और हरे गमछे लपेटकर नित्य नैमित्तिक क्रियाओं के बाद बादाम ,किशमिश मिली भंग छनती थी और बतरस की फुहारें उड़ती थीं ।पहलवान टाइप लोग अखाड़े में जोर आजमाइश करते थे ।रात होते ही बगीची भूत प्रेतों के हवाले हो जाती थी ।
गमछा मालिक की बेफिक्री और मस्ती का प्रतीक चिन्ह होता था ।भगवा सरकार के दौरान भगवे गमछों का उत्पादन बढ़ गया है ।इसे देखते ही पुलिस और अफसरों की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है ।काँवड़ के दिनों में इसका शबाब चरम पर होता है ।गमछा सड़कों पर साक्षात ताण्डव प्रस्तुत करता है ।भले लोग रास्ते खाली कर देते हैं।कांवड़ियों में जब से बहनों ने भाग लेना शुरू किया है तब से भगवा गमछा और अधिक आक्रामक हो गया है ।जय श्रीराम और बम भोले के उद्घोष से इसकी शक्ति सहस्र गुनी हो जाती है ।
मॉडर्निटी के चक्कर में अब लाल ,हरे गमछे पिछड़ेपन में शुमार हैं।डिजायनर गमछों की बहार है ।अब गाँव तक में पाँच गजी धोती पहनने वाले गिने चुने रह गये हैं ।ढाई गज की अद्धी पहनने वाले मजदूर भी दिखाई नहीं देते ।अमेरिका के मजदूरों ने जीन्स का जो प्रचार किया है उससे भारतीय मजदूर भी प्रभावित हुआ है ।यही वजह है कि साबुत जीन्स के मुकाबले फ़टी हुई जीन्स ज्यादा कीमती है ।अमीरी का पैमाना अब फ़टी हुई चिन्दियों से भरी जीन्स है । गिरिमिटिया विश्व में जहां जहां गये हैं वहां गमछे में बंधा सत्तू ,भूजा ,नमक ,गुड़ और मिर्च उनकी विश्वविजय की पताका की तरह लहराते हैं।कोरोना काल ने इनके इस स्वाभिमान और परिश्रम को ध्वस्त कर दिया है ।बेचारे जान हथेली पर रखकर घर की ओर प्लेग के चूहों की तरह भाग रहे हैं और हर ऐरे गैरे द्वारा दुरदुराये जा रहे हैं।रेणु के हीरामन गाड़ीवान की तरह उन्होंने कभी वापस न लौटने की  तीसरी कसम पता नहीं ली है कि नहीं ?लेकिन प्यारे गमछे ने यहाँ भी उनका साथ नहीं छोड़ा है ।
हो सकता है अगले चुनाव तक गमछा किसी पार्टी का चुनाव चिन्ह और झंडा ही बन जाय ।

✍️ डॉ मूलचंद्र गौतम
शक्तिनगर, चंदौसी (जनपद सम्भल ) -244412
उत्तर प्रदेश,भारत 
मोबाइल फोन नम्बर 9412322067


2 टिप्‍पणियां:

  1. मूलचंद गौतम जी का हास्य व्यंग्य गमछा पढ़ा। आनंद आ गया । कोरोना काल में प्रधानमंत्री जी के द्वारा प्रयुक्त किए गए इस वस्त्र को जिस प्रकार से उन्होंने इतिहास खँगाल कर प्रस्तुत किया है ,उससे ज्ञान वर्धन भी हुआ और पढ़ते पढ़ते समय का पता ही नहीं चला । बधाई मूलचंद गौतम जी।
    रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451

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