शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल)के साहित्यकारधर्मेंद्र सिंह राजौरा की लघुकथा -----गंदगी


वो चौराहे पर अक्सर पायी जाती/ठेले वाले , खोमचे वाले , दुकानदार उसकी विक्षिप्तता पर तरस खाकर उसे कुछ न कुछ खाने को अवश्य दे देते/उसके  बाल उलझे हुए थे न जाने वो कितने दिनों से नहीं नहाई थी/कुछ लोग कहते हैं कि वो किसी अच्छे परिवार की बहु थी जिसका परित्याग कर दिया गया था और उसका कुसूर ये था कि शादी के कई साल बाद भी उसे कोई सन्तान न हुई थी/


कुछ  संभ्रांत लोग वहां खड़े हुए थे  और शाम के समय  एक ठेले पर खड़े केले खा रहे थे उनमें से एक ने उसे खाने को  तीन चार केले दे दिए/उसने केले खाये और अपने व उन लोगो के छिलके लेकर जाने लगी /  एक तेल टेंकर वहाँ से गुजर रहा था/ क्लीनर ने दरवाजा खोला और एक जोर की पीक सड़क पे मारी शायद उसने गुटखा खाकर पीका था/ उस विक्षिप्त अवस्था में भी उसे यह बात नागवार गुजरी /वो पलट कर टेंकर के पीछे दौडने लगी / टेंकर की रफ़्तार तेज़ थी लेकिन सौभाग्य से सड़क पर थोड़ा जाम था सो उसकी गति धीमी हो गई/  

औरत ने सारे छिलके टेंकर की छत पर दे मारे/ छिलके फैंकने के बाद उसके चेहरे पर परम संतोष के भाव उभरे/ कितना सटीक था उसका निशाना / वो खिलखिला कर हंसी और चौराहे की और मुड़ गयी किसी भाला फेंक विजेता की मानिन्द/

शायद वो गंदगी करने वाले क्लीनर को सबक सिखाने में सफल हुई थी/

✍️ धर्मेंद्र सिंह राजोरा, बहजोई,जिला सम्भल

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