कथा की समाप्ति के बाद भोजन प्रसाद की व्यवस्था थी। दो सब्जी,रायता,पुलाव,पूरी के साथ देशी घी का मेवायुक्त हलवा और गुलाबजामुन भी बनवाए गए थे। आयोजकों ने भरपूर मात्रा में सामान बनवाया था,लेकिन उम्मीद से अधिक श्रद्धालुओं के आ जाने के कारण बाद में व्यवस्था गड़बड़ा गई।किसी को एक सब्जी मिली,किसी को रायता,किसी को पुलाव। भीड़ इतनी असंयमित हो गई कि लोग कथा की बातेंं भूलकर ,एक दूसरे पर दोषारोपण करने लगे। हद तो तब हो गई जब एक सज्जन चिल्लाने लगे "हमने दस हजार रुपए डोनेशन दिया था, हमें न हलवा मिला, ना गुलाब जामुन।जिन्होंने एक धेला नहीं दिया, वे सारा माल उड़ा गए।"
✍️डाॅ पुनीत कुमार
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