प्यार के दीपक जलाना चाहती हूँ
दुश्मनी लौ से जलाना चाहती हूँ ।।1।।
दूर हो मन के अँधेरे अब सभी के
दीप ऐसे मैं जलाना चाहती हूँ ।।2।।
लौट आयें रूठकर जो भी गये हैं
देहरी ऐसे सजाना चाहती हूँ ।।3।।
याद आती है मुझे बचपन परी की
चाँद को आँगन बुलाना चाहती हूँ ।।4।।
बरस बीते जागते ,सोयी नही जो
ख़्वाब से उसको जगाना चाहतीं हूँ।।5।।
✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा
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