गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा -----दीमक


रुपाली एक कामकाजी महिला थी।जल्दी जल्दी सुबह का काम निबटा कर बैंक चली जाती। शाम को आते आते 6 बज जाते।आते ही फिर उसके आगे काम का पिटारा खुल जाता।इसी समयाभाव के कारण वह घर की साफ सफाई पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती।काम वाली अपनी मर्जी से काम पूरा कर चली जाती।बचता रविवार का दिन यही दिन था, जो रुपाली को घर की पूरी सफाई के लिये मिलता।

       ऐसे ही एक रविवार रुपाली अपने घर की सफाई कर रही थी।देखती क्या है, उसकी मौडयूलर किचन की वार्डरोब को दीमक लग गया है और उसने अंदर ही अंदर उसे खोखला भी कर दिया है। आनन फानन रुपाली ने गूगल पर सर्च कर दीमक के उपचार ढूंढने शुरू किये और उन्हें अपनाना शुरू किया।कुछ दिनों में दीमक तो चली गयी लेकिन उसके निशान रह गये। रुपाली जब भी उस वार्डरोब को देखती सोचती क्या आज भी हमारे समाज में फैली कुरीतियां , अंधविश्वास इस दीमक की तरह नहींं है,जो अंदर ही अंदर उसे खोखला कर रहे हैं। ऐसा खोखला जिसकी क्षतिपूर्ति करना मुश्किल ही नहींं नामुमकिन है।

✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

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