शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा ----बराबरी


"ये कंडक्टर की सीट है बहन जी,यहाँ मत बैठिए।"

"अरे भाई जरा तुम खड़े हो जाओ और बहन जी को बैठने दो।"

ड्राइवर ने सामने सीट पर बैठे अखबार पढ़ रहे युवक से कहा।पहले तो उसने अनसुना किया पर ड्राइवर के दोबारा कहने पर वह जैसे झल्ला गया।

"वाह भई वाह। वैसे तो लड़कियाँ लड़कों से कम नहीं,लड़कियों को लड़कों के बराबर समझो,लैंगिक समानता,अलाना फलाना और बसों में महिला आरक्षित सीट भरने के बाद अनारक्षित सीट पर बैठे आदमी को भी महिला के लिए उसकी सीट से उठा रहे हो।क्या कहने इस इंसाफ के?धन्य हो नारीवाद!"कहकर भुनभुनाता हुआ वह फिर अखबार देखने लगा।ड्राइवर चुप हो गया।

            पूरी बस खचाखच भरी थी।पीछे बैठे एक बुजुर्ग से रहा नहीं गया,जोर से बोले,"बेटा अगर किसी तरह पीछे आ सको तो मैं अपनी सीट तुम्हें देता हूँ।" रमोला ने कृतज्ञता भरी मुस्कान भेंट की और भीड़ की ओर देखा।

      तभी एक दूसरा युवक जो कि बस में ही खड़ा था,उस युवक से बोला,"भाई अपनी क्रांतिकारी बातें फिर कभी कर लेना,पेपर छोड़ कर जरा मैडम की हालत तो देखो।शर्म आनी चाहिए तुम्हें।"

       अब उस युवक ने रमोला को ध्यान से देखा तो हिचकिचा गया।गलती सुधार करते हुए उसने अपनी सीट से उठते हुए कहा,"माफ कीजिए मैंने पहले ध्यान नहीं दिया,आप बैठ जाइये।"

     रमोला ने अब तक रॉड के सहारे अपने को मजबूती से टिका लिया था और सीटों के बीच के स्थान पर वह सावधानीपूर्वक खड़ी हो गयी थी।दृढ़ स्वर में उसने कहा,

"कोई बात नहीं आप बैठे रहिये।मुझे तो रोज ही सफर' करना है।............

वैसे आप सही कह रहे थे बराबरी का मतलब हर बात में बराबरी होना चाहिए।............

आपका धन्यवाद कि आपने मुझे सीट ऑफर की।मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँगी कि कभी कोई गर्भवान पुरूष इस तरह खचाखच भरी बस में असहज हो रहा हो तो आप की तरह मुझे भी उसकी सहायता करने का समान अवसर मिले।"

✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें