शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा -----आँखों का सफ़र


अचरज से तकती है नन्ही आँखे रंग बिरंगे संसार को,  बचपन की नटखट गलियों में असीमित सवालों से भरी 

आंखें जवाब ढूंंढने को मचलती रहती हैं  ,सामने खड़ा  खटखटाता है  यौवन दरवाजा,जिसके प्रेम में डूब जाती हैं  आँखे, फिर याद आया अभी करने है पूरे स्वप्न भी तब दिखती आँखो में सपने पूरे करने की ललक ,पर मिलते ही  मंजिल आंखों  में दिखने लगती भविष्य की चिंताए ,इतनी चिंता कि धुंधली होती आंखों पर किसी का ध्यान ही नही गया,जीवन भर चलती आंखें आज ठहर गयी एक जगह, बहुत कोशिश की मैने देखने की, पर उन आंखों में आज कुछ नही दिखता, बैरंग सी दीवारों के बीच अपने शरीर में सुइयोंं के चुभने पर भी वे विचलित नही होती है ........        

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

                                     

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