मंगलवार, 22 जून 2021

वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 15 जून 2021 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ रीता सिंह, दीपक गोस्वामी 'चिराग', वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी', प्रीति चौधरी,सीमा रानी,अशोक विद्रोही,रेखा रानी,मीनाक्षी वर्मा,धर्मेन्द्र सिंह राजौरा,चन्द्र कला भागीरथी,सुदेश आर्य, राजीव प्रखर, कंचन खन्ना की कविताएं और कमाल ज़ैदी 'वफ़ा' की कहानी ....


काले काले बादल आये

नील गगन में धूम मचाये

सोनू मोनू भी खिड़की से

देख नज़ारे खूब हर्षाये ।


आगे पीछे दौड़ रहे वे

चोर सिपाही खेल रहे वे

छूने इक दूजे को देखो

बने बाबरे घूम रहे वे ।


गरज गरज कर खूब डराये

पानी बस थोड़ा सा लाये

नाव बनायी कागज की जो

राजू उसको चला न पाये ।


डॉ रीता सिंह,आशियाना, मुरादाबाद

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चांऊ बिल्ली, म्यांऊ बिल्ली ।

दोनों बिल्ली बड़ी चिबिल्ली ।

 चांऊ-म्यांऊ खास सहेली।   

दोनों नटखट,एक पहेली ।


बीच रास्ते रोटी पाई।

दोनों में हो गई लड़ाई। 

मेरी रोटी,मेरी रोटी ।

भिड़ गयीं दोनों बिल्ली मोटी।


फिर आया वह कालू बंदर ।

वानर पूरा मस्त-कलंदर ।

बंद करो तुम बहिन लड़ाई ।

देखो अब मेरी चतुराई। 


एक तराजू लेकर आए।

रोटी के दो भाग कराए। 

दोनों पलड़े आधी रोटी। 

पर उसकी नीयत थी खोटी।


 जो पलड़ा भी दिख गया भारी।

 उसकी रोटी मुंँह में मारी। 

बांयी खायी, दांयी खायी। 

फिर से बांयी, फिर से दांयी।


 दोनों देख रही बर्बादी।

 रोटी बच रही केवल आधी।

चाऊ ने म्यांऊ को देखा।

म्यांऊ ने चाऊ को देखा। 


दोनों में कुछ हुआ इशारा ।

झगड़ा मिट गया पल में सारा।


 रुको-रुको  ओ! कालू भाई।

बन गए भाई आप कसाई।

बंद करो ये अपना लफड़ा।

खत्म हो गया है यह झगड़ा।


छीने फिर रोटी के टुकड़े।

खिल गये उन दोनो के मुखड़े।

मिलीं गले,फिर बंद लड़ाई।

मिल कर थी फिर  रोटी खाई।


--दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन,कृष्णाकुंज

बहजोई(सम्भल) 244410 उ. प्र.

मो. 9548812618

ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com

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आज टिफिन में क्या लाए हो,

मुझे         दिखाओ         तो,

नमक मिर्च का मुझको थोड़ा,

स्वाद         चखाओ        तो।


गोलू   बोला   लंच   ब्रेक   में,

ही                  दिखलाऊंगा,

इससे  पहले  एक   कौर  भी,

नहीं                  खिलाऊंगा।


तेरी  इतनी   हिम्मत  मुझको,

आँख       दिखाता           है,

अपनेसड़े टिफिनकी किसपर,

धौंस         जमाता            है।


अब   तू  देगा  तब  भी   तेरा,

लंच          न          खाऊंगा,

नहीं  तुझे  अपनी   गाड़ी  से,

लेकर                    जाऊँगा।


तभी  बज  गई  लंचब्रेक  की,

टन,      टन,      टन      घंटी,

हाथ साफ  करने  को  खोली,

पानी           की          टंकी।


इतना  गुस्सा  क्यों  करते हो,

ओ           चिंटू           दादा,

साथ  बैठ    खाना   खाते  हैं,

हम          आधा    -   आधा।


माफ करो  गोलू  अब मुझसे,

हुई      भूल       जो       भी,

साथ  परांठों   के   खाते   हैं,

हम          आलू         गोभी।


गुस्सा  करना  बुरी   बात  है,

सुने           सभी         बच्चे,

साथ   प्यार   के  रहने  वाले,

होते            हैं          अच्छे।

          

           

वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी',मुरादाबाद/उ,प्र,9719275453

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आज अमिया अचार 

भई सूखत हमार 

 हम खात बार बार 


जब माई  धमकात 

हम जाकर चुपचाप 

खट्टी अमिया खात 


दाँत खट्टे हो जात 

नैन खुल नही पात 

फिर भी हमको भात 


धूप पाँव जल जात 

पसीना बहुत आत 

फिर भी अमिया खात 


हम काग को उड़ात

तो चिरिया आ जात 

दुपहरिया भर खात 


चोंच भरो न हमार 

छोड़ अमिया अचार 

जाओ अपने द्वार


  प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा

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सुबह सवेरे बांग लगाकर 

मुर्गा  सबको जगाता है। 

उठो देर तक नही सोना, 

हमको ये सिखलाता है। 


अगर देर तक सोयेगे हम, 

जीवन अपना खोयेगे हम। 

गया समय नही आयेगा ,

जीवन व्यर्थ रह जायेगा। 


वक्त ही होता बहुत महान, 

इसकी कीमत सदा ही जान। 

वक़्त यदि व्यर्थ चला जायेगा, 

फिर जीवन भर पछतायेगा। 


मुर्गा हमको सुबह जागकर, 

यही सीख सिखलाता है। 

सभी काम समय पर करना, 

सदा जीवन सफल बनाता है |


✍🏻सीमा रानी, पुष्कर नगर, अमरोहा 

         मोबाइल फोन नम्बर 7536800712

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याद बहुत आता मुझे ,

        वह बचपन का गांव ।

वह अम्बुआ की कैरियां,

         वह पीपल की छांव।


सावन की बरसात में ,

       जल का प्रबल बहाव।

हम बच्चों की टोलियां,

       वह कागज की नाव।


पिलखन में झूले पड़े, 

            तीजों  का त्यौहार। 

रंग बिरंगी ओढ़नी,

           गातीं राग मल्हार ।।


झूठ मूंठ की शादी ,

           होती  धूम   मचाते ।

सज धज कर बाराती,

            आते हंसते  गाते ।


फिक्र कोई घर की थी,

            न  जीवन की चिंता‌।।

खूब खेलना  खाना ,

        न इतना पढ़ना पड़ता।


गांव हमारा छोटा सा,

            था    देखा   भाला।

जहां गुजारा हर पल,

            बड़ा उमंगों वाला।


इतना प्यारा बचपन ,

           क्या भूला जाता है ?

जितना उसे भुलाऊं ,

            दूना याद आता है।


खोया बचपन मेरा ,

           अब कोई लौटा दे ।

मेरा सब कुछ ले ले,

          बालक मुझे बना दे।।


पर जीवन अनमोल ,

          सदा आगे चलता है।

बीता हर एक पल न,

       वापस फिर मिलता है ।।


इसीलिए  हर गम को,

         खुशियों को अपना लो।

करके कठिन परिश्रम,

          जो भी चाहो पालो।।


अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद

 मोबाइल फोन 82 188 25 541

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अब कहां की तैयारी ,

 कर दी मम्मा बोलो।

      आने दो पापा को , 

      संग साथ चलेंगे मां, हम सैर सपाटे को।

      आते होंगे पापा इतनी भी जल्दी क्या।   

      भूखे होंगे पापा,

  ब्रेकफास्ट बनाया क्या।

      अपनी धुन में बेटी ,

कहती ही जाती है।

       पापा जो लाए थे,

 मेरी  ड्रैस निकाली क्या।

       क्या ढूंढ रही हो गुमसुम सी,

        कुछ तो मम्मा बोलो ।

        आने दो पापा को,

क्यों कुछ भी नहीं बताती हो,

चुपचाप किसी उलझन में हो,

 क्यों लपक फ़ोन पर जाती हो।

  बाहर क्यों लोग इकट्ठा हो

   बातें करते हैं पापा की।

   कोई ईनाम मिला है क्या,

   या हुई तरक्की पापा की।

   मैं भी तो उनकी बेटी हूं , 

   कुछ तो मम्मा बोलो।

   आने दो पापा को।

   जो जीत के आएंगे,

   आते ही मुझे अपने 

कांधे पे बिताएंगे।

    मेरी प्यारी गुड़िया की 

नई ड्रेसेज लाएंगे।

       सारी फरमाइश मेरी

 पूरी कराएंगे।

      आपकी भी लाएंगे  

साड़ी मम्मा बोलो।

      आने दो पापा को।

  दरवाजे पर दस्तक 

जैसे पापा देंगे।

  आते ही मैं उनको

 जयहिंद बोलूंगी।

  मां थाल सजा लेना,  

तुम स्वागत करने को।

   मैं थाली बजा  दिल से 

वन्दे मातरम् बोलूंगी।

   आने दो पापा को।

   रेखा सबसे न्यारी  गुड़िया

, हूं न मम्मा बोलो।

       

   रेखा रानी, विजयनगर गजरौला, जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश

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 चिड़िया रानी आ जाओ ना 

दाना पानी खा जाओ ना


 अखियां तरसे नैना भीगे

 रैना बीती तुमको देखे

 चीं चीं चीं चीं गीत सुहाना 

कितना मनमोहक गाती थी

 हमको फिर वही सुना जाओ ना 

चिड़िया रानी आ जाओ ना

 दाना पानी खा जाओ ना

 नन्हीं प्यारी मेरी गौरेया 

 तुम बच्चों की धड़कन थी 

कभी अंगना में कभी पेड़ पर 

फुदक फुदक कर चलती थी

दरस सोन चिरैया फिर से दिखला जाओ ना

 चिड़िया रानी आ जाओ ना

 कभी रेत में नहा नहा कर 

हम को हंसी दिलाती थी 

कभी पेड़ पत्तों में छुप कर 

आंख मिचोली कर जाती थी

प्राकृतिक खिलवाड़ से चली गई तुम, 

लुप्त कहीं हो जाओ ना 

चिड़िया रानी आ जाओ ना


मीनाक्षी वर्मा,मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

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लौट आओ गौरैया रानी

लिए खड़े हैं दाना पानी

नन्हे बच्चे तुम्हें बुलाते

नहीं करेंगे अब शैतानी


बिना तुम्हारे सूना आंगन

सूना मेरे मन का उपवन

चीं चीं करती आ जाओ तुम

कितनी मधुर तुम्हारी वाणी


छूटा जब से साथ तुम्हारा

टूटा कोई सपना प्यारा

ऐसे रूठी हो तुम जैसे 

बीती कोई याद पुरानी


धर्मेन्द्र सिंह राजौरा, बहजोई

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ये छोटे छोटे बच्चे

होते मन के सच्चे


ना कोई इनमें छल कपट

ना ईष्र्या द्वेष हैं इनमे


आपस में मिलकर रहते

देखते सुंदर सुंदर सपने


खेल खेलते मिल जुल कर

गीत गाते प्यार के


माता पिता से प्यार करते

बडो का आदर सत्कार करते


मन में ना कोई भेद-भाव

ना कोई जाति धर्म का अन्तर


ईश्वर का स्वरूप है बच्चे

तन मन से होते सच्चे।


 चन्द्र कला भागीरथी, धामपुर जिला बिजनौर

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चलता फिरता रथ लगता, मुझको अपना घर।

चतुर सारथी हैं पापा और हम सवार उसपर ।

मम्मी तो जैसे मशीन है कभी नही थकती,

सबसे बाद मे सोती और पहले सबसे उठती।

चमकाती इस रथ को अंदर बाहर नीचे ऊपर,

चतुर सारथी पापाऔर हम सब सवार उसपर।

योद्धा की तरह भाई बहन हम आपस मे ही लड़ते 

तुनक तुनक कर खींच तानकर इधर-उधर गिरते पड़ते।

पढते लिखते खाते पीते कभी चढ जाते छतपर

चतुर सारथी पापा जैसे हम सवार उसपर।

चलता फिरता रथ लगता,मुझको अपना घर,

चलते फिरते रथ लगते मुझको सबके घर। 


 सुदेश आर्य, मुरादाबाद

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बाल कहानी 

  "सॉरी "                                                                    "अम्मा भय्या ने आज फिर गिलास तोड़ दिया".झाड़ू से कमरे में शीशे के गिलास की किरचें उठाते हुए कंचन ने ज़ोर से अम्मा को बताया ।'अरे, मैंने 'सॉरी' बोल तो दिया 'अमरीश ने गुस्से से कंचन की ओर देखते हुए कहा।

'अम्मा भय्या ने मेरे कपड़ो पर चाय गिरा दी अब मै बिना ड्रेस के कैसे कालेज जाऊं ?' रुआँसी होते हुए कंचन ने फिर अम्मा से अमरीश की शिकायत की।

'सॉरी' अमरीश ने मुस्कराते हुए कंचन की ओर देखकर कहा. बेचारी कंचन मुँह लटकाकर बैठ  गई मगर आज उसने सोच लिया था कि आज शाम को जब टयूशन पढ़ाने वाले सर आएंगे तो वो उनसे भय्या की शिकायत जरूर करेगी शाम को सर आये तो उसने अमरीश के आने से पहले उन्हें सारी बात बता दी कि किस तरह भय्या उसे परेशान करते है और सॉरी कहकर पल्ला झाड़ लेते है  सर ने अमरीश को सबक सिखाने की सोच रखी थी  होमवर्क चैक करते समय गलती पर उन्होंने अमरीश के बायें गाल पर चपत लगाया और सॉरी बोलकर यह कहते हुए दाये गाल पर भी चपत लगा दिया  कि उन्हें दाये पर चपत लगाना था ।सर के जोरदार चपत से अमरीश का गाल लाल हो गया सर ने फिर  'सॉरी' कहते हुए उसे समझाया कि 'सॉरी' का मतलब यह नही की गलतियों पर गलतियां करते रहो और 'सॉरी' बोल दो यह सही नही है आजकल लोग बड़ी बड़ी गलतियां करके 'सॉरी' बोल देते है और फिर वही गलतियां दोहरा देते है 'सॉरी' का मतलब उस गलती को न करना या गलतियों से तौबा करना है।सर की बात सुनकर अमरीश ने उन्हें वचन दिया कि आगे से वो ऐसी गलती नही करेगा  जिसपर उसे शर्मिंदा होना पड़े।


कमाल ज़ैदी 'वफ़ा', सिरसी (संभल),  मोबाइल फोन नम्बर 9456031926

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