लिखना सीख रहे हैं
नए-नए
अर्थों से जुड़कर
टिकना सीख रहे हैं
शब्दों की
चौपाल लगाना
रंगों, ध्वनियों से
बतियाना
अच्छा-अच्छा
होने सा हम
दिखना सीख रहे हैं
घर तक आए
बाज़ारों में
विज्ञापन में
अख़बारों में
लोग अजीब
तरह से जाकर
बिकना सीख रहे हैं
राजा-रानी
पहले जैसे
जीवन जीते
खूब मज़े से
गर्म तबे पर
रोटी जैसा
सिकना सीख रहे हैं
✍️ माहेश्वर तिवारी
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