नहीं चिंता रही कोई, न कोई डर सता पाया
पिताजी आपके आशीष.की हम पर रही छाया
हमारी प्रेरणा है आपका सादा सरल जीवन
सदा हम पर रहे बस आपके व्यक्तित्व का साया.
नहीं सोचा कि कैसी है, पिता की जेब की सेहत।
रखी जिस चीज पर उंगली, उसी को हाथ में पाया।
जरूरत के समय अपना, न कोई काम रुकता था।
भुला अपनी जरूरत को, हमारा काम करवाया।
भले थी जेब खाली किंतु चिंता में नहीं देखा
अभावों का हमारे पर नहीं पड़ने दिया साया।
पिता खामोश रहकर हर, घड़ी चिंता करे सबकी,
पिता बनकर पिता का मोल अब अपनी समझ आया।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG - 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद।
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