रविवार, 6 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल का गीत --सोचो तो इस धरती माँ का हम पर कितना कर्ज है-


सोचो तो इस धरती माँ का हम पर कितना कर्ज है।

और हमारा धरती के प्रति सोचो क्या क्या फर्ज है।


हमको धरती से ही जीवन के सब साधन मिलते हैं।

अन्न और जल, वायु आदि सब इसके आँगन मिलते हैं।

लेकिन फिर भी देखो मानव ये कितना खुदगर्ज है।

सोचो तो इस धरती माँ का हम पर कितना कर्ज है।


हमने वृक्ष काटकर धरती माँ को कितने घाव दिये।

बाँध बनाकर नदियाँ रोकीं ताल तलैया पाट दिये।

अंधाधुंध गंदगी करके सोच रहे क्या हर्ज है।

सोचो तो इस धरती माँ का हम पर कितना कर्ज है ।


घोर प्रदूषण करके हमने नदियां दूषित कर डालीं।

उद्योगों से धुंआ धुंआ कर वायु प्रदूषित कर डाली।

हम सबका व्यवहार वस्तुतः अब धरती का मर्ज है।

सोचो तो इस धरती माँ का हम पर कितना कर्ज है ।


समय आ गया है धरती के जख्मों को भरना होगा।

वृक्ष लगाकर हरियाली से हरा भरा करना होगा।

वायु और जल स्वच्छ रखें अब यही हमारा फर्ज है।

सोचो तो इस धरती माँ का हम पर कितना कर्ज है ।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद 

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