सैर इस आसमाँ की कराओ परी
चाँद के पास जाकर सुलाओ परी ।।1।।
है वहीं माँ , बतायें मुझे सब यही
अब चलो आज माँ से मिलाओ परी ।।2।।
तुम सुनाकर कहानी मुझे गोद में
नींद भी नैन में अब बुलाओ परी ।।3।।
झिलमिलाते सितारे कहें हैं मुझे
ज़िंदगी में नया गीत गाओ परी ।।4।।
सीख अब मैं गयी बात यह काम की
फूल से तुम सदा मुस्कुराओ परी ।। 5।।
✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा
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ऐनक लगा कर पुस्तक खोली ।
फिर गुड़िया मम्मी से बोली।
पढ़ना माँ मुझको सिखलाओ,
मेरी प्यारी हिंदी बोली।
है यह सबसे प्यारी भाषा।
सारे जग से न्यारी भाषा।
'अ'अनार से आरंभ होकर,
'ज्ञ' ज्ञानी बनने की आशा।
क्या है 'स्वर-व्यंजन' समझाओ।
सारे अक्षर मुझे पढाओ
इन अक्षर को कैसे लिखते ,
मुझको बारंबार सिखाओ।
✍️ दीपक गोस्वामी चिराग, बहजोई, संभल
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मोबाइल पर पढ़ते बच्चे
ऐसे आगे बढ़ते बच्चे
बिना परीक्षा अगली कक्षा
घर बैठे ही चढ़ते बच्चे
बिना दोस्त के सँग में खेले
नई जिंदगी गढ़ते बच्चे
खोया बचपन ,दोष समूचा
कोरोना पर मढ़ते बच्चे
✍️ रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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जंगल भर में शोर मचा है,
भालू को कोरोना है।
डरे हुए हैं वन्य जीव सब,
सहमा कोना - कोना है।
भनक लगी बंदर मामा को,
गहन सोच में डूब गए।
बहन लोमड़ी भी चिंता में,
भालू भईया सूख गए।
जगह - जगह पर खड़े हुए,
बात यही सारे कहते।
इंसानों वाली बीमारी
भालू को हो गई कैसे।
नन्हा सा खरगोश यह बोला,
इस सब का यह समय नहीं है।
भालू जी की जान बचालो,
उनकी हालत सही नहीं है।
बनी सहमति तब बोले सब
जाओ वैद्य जी को ले आओ।
रुको- रुको नंबर है उनका,
उनको फौरन फ़ोन लगाओ।
बंदर मामा ने तब झट से ,
हाथी जी को फ़ोन लगाया।
बीमारी का सारा हवाला,
फ़ोन पे ही उनको समझाया।
हाथी राजा काढ़ा पुड़िया,
साथ में लेकर दौड़े आए।
सबने देखा पीपीई किट में
हाथी राजा नहीं समाए।
नब्ज़ टटोली भालू जी की,
खांसी बहुत ही उन्हें सताए।
बहन लोमड़ी को पुड़िया,काढ़ा,
देने की विधि भी समझाए।
भाप भी देना बार बार तुम
उसके सारे महत्व बताए।
काढ़ा पीकर ,पुड़िया लेकर ,
भालू जी अब स्वस्थ हुए।
जीवों की एकता के आगे
कोरोना जी पस्त हुए।
कान पकड़ कर भालू जी ने
दृढ़ निश्चय इस बार किया।
सर्कस में जाना नहीं मुझको,
संग में सबके रहकर रेखा
फिर से स्वप्न संजोना है।
जंगल भर में शोर मचा है
भालू को कोरोना है।
✍️रेखा रानी, गजरौला
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एक सपेरा साँप पकड़ने,
अपने घर पर आया,
सब बच्चों को हाथ जोड़कर,
उसने यह समझाया,
बोला जहरीली नागिन में,
गुस्सा बहुत भरा है,
मेरा दिल भी इसके आगे,
सच में डरा-डरा है।
बीन बजाकर हाथ नचाकर,
घंटों उसे रिझाया,
कैसे पकडूं इस नागिन को,
समझ न उसके आया।
स्वयं सपेरे ने बच्चों को,
आकर यह बतलाया,
पास नहीं जाना मैं जाकर,
अंकुश लेकर आया।
तभी सपेरे ने अंकुश में,
उसका गला फसाया,
डिब्बे में कर बंद उसे सब,
बच्चों को दिखलाया।
बच्चों ने अंकल को सबसे,
बलशाली बतलाया,
कोई छोटा भीम, किसी ने,
साबू उसे बताया।
बच्चों की सुंदर बातों ने,
सबका मन बहलाया,
हाव-भाव को देख सभी को,
मज़ा बहुत ही आया।
✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र,
मोबाइल 971927545
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नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
छुट्टी में जब हम हैं जाते
नाना नानी खुश हो जाते
अपनी बहुत प्रतीक्षा करते
दोनों प्यार बहुत हैं करते
मैं नानी की राजदुलारी
और भैया है राज दुलारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
नानी के घर दो गैया हैं
एक बहना और एक भैया है
मामा रोज जलेबी लाते
सब मिल दही जलेबी खाते
उधम मचाते कभी झगड़ते
खाते कसम ना आएं दोबारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
नहर किनारे बसा गांव है
शुद्ध हवा और धूप छांव है
नाना संग खेत पर जाते
नलकूप के पानी में नहाते
फिर बागिया से अमियां लाते
अजब खेत और ग़ज़ब नज़ारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा नाना
पर इस बार नहीं जा पाए
कोरोना ने होश उड़ाए
बहुत भयंकर बीमारी है
घोषित हुई महामारी है
अखिल विश्व इससे है हारा
पूछो मत कितनों को मारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
अबकी अरमां मिल गए माटी
सारी छुट्टी घर में काटी
कोरोना से सब हैं बेदम
केवल घर में कैद हुए हम
ऊब गये हैं पढ़ते पढ़ते
होते बोर रहे दिन सारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
मिलने से मजबूर हो गए
नाना-नानी दूर हो गए
हे प्रभु अब तो दया दिखाओ
कोरोना को मार भगाओ
दुखी हो रहे नाना नानी
निशदिन रस्ता तकें हमारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
✍️अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद
82 188 25 541
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बन्दर ने सबको बहकाया,
जमकर के उत्पात मचाया।
लोकतंत्र का है यह ज़माना,
अब न किसी से है घबराना ।
भालू ने काफी समझाया,
बन्दर की पर समझ न आया।
जंगल मे फिर शोर मचाया,
जोर जोर से गाना गाया।
डाली डाली उछला कूदा,
करता रहा हरकत बेहूदा।
शेर ने जब चिंघाड़ लगाई,
नानी याद बन्दर को आई।
भालू ने फिर मुह को खोला,
बन्दर से चुपके से बोला।
सब मानेगे, देर सवेर,
जंगल का राजा है शेर।
जिसके राज में सबकी खैर,
वो राजा है असली शेर।
✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा (मुरादाबाद), मोबाइल फोन नम्बर 9456031926
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छोटे छोटे रंग बिरंगे
इस दुनिया में कीट पतंगे
मधुमक्खी शहद बनाये
भौरा गुन गुन गुन गाये
बड़ा कटीला है ततैया
इससे बचकर रहना भैया
तितली होतीं बड़ी निराली
सफ़ेद पीली नीली काली
✍️धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई
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चिड़िया रानी गीत सुनाती
चीं चीं चूँ चूँ बात बनाती
सिर पर चढ़ आया है सूरज
सोया मुन्ना उसे जगाती ।
उठो सवेरा यही सिखाती
कितनी सुंदर भोर बताती
नहीं देर तक सोना अच्छा
ऐसा सबको पाठ पढ़ाती ।
आँगन आती नजर घुमाती
पानी में भी खेल खिलाती
कभी मुंडेर कभी पेड़ पर
फुदक फुदक है नाच दिखाती ।
✍️डॉ. रीता सिंह, आशियाना, मुरादाबाद
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बच्चे नन्हे फूल से ,घर बगिया की शान।
सींच रहे हैं यह धरा,दाता पौधे जान।।
नन्हे नन्हे हाथ हैं, नन्हे पग औ चाल।
पौध लगा कर कर रहे,देखो बड़े कमाल।।
संगी साथी साथ ले, होंठों पर मुस्कान।
बगवानी में जुट गए ,कृषक स्वयं को मान।।
बच्चा-बच्चा दे रहा,धरती को सम्मान।
भावी पीढ़ी पर रहा, सब को ही अभिमान।।
✍️इन्दु रानी, मुरादाबाद
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बचपन बड़ा सुहाना है
बच्चे मन लुभाते है
कई खिलौने होते उन पर
फिर भी शोर मचाते है
बचपन बड़ा सुहाना है।।
हैलिकाप्टर मोटर कार
ये चलाते वे कई बार
धनुष चलाते सोटा दिखाते
फिर भी ऐठ दिखाते हैं
बचपन बड़ा सुहाना है।।
गुडडे गुड़ियों का विवाह करते
छोटे बर्तनों में खाना बनाते
कभी लुका छुपी कभी दौड़ भाग
सारे दिन उद्धम मचाते है
बचपन बड़ा सुहना है।।
गर झुनझुना मिल जाए
बच्चा खूब नाचता गाता है
कभी दद्दू के पास जाकर
झुनझुना उनकों दिखाता है
ऐसी उसकी हरकत देख
सबका मन प्रफुल्लित हो जाता है।
बचपन बड़ा सुहाना है।।
✍️चन्द्रकला भागीरथी
धामपुर जिला बिजनौर
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न होती- कभी पढ़ाई,
होती न कभी -लिखाई।
कभी जान -'न पाते,
दुनियाभर की- हम सच्चाई।
वर्णमाला हिन्दी -की सीखी,
अंग्रेजी की- alphabet भी सीखी
सारे विषय -हमने पढ़कर,
जानी जग- की रीति।
कभी विज्ञान -को पढ़के ,
कुछ अनुसंधान- भी करके।
मानचित्र भी- हमने जाना,
भूगोल को- भी पढ़के।
मातृभाषा के -द्वारा हमने,
सीखा सब- आपसी वार्तालाप
गणित के द्वारा -सीखा लेन देन
और जाना'- तोल व नाप।
बुद्धि से हम- बढ़े न होते,
रह जाते- गंवार अनपढ़।
धन्य धन्य हैं-माता पिता जिन्होंने,
शिक्षा की ज्योति- जलाई हमपर।
✍️ सुदेश आर्य , मुरादाबाद
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