रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ निवासी) साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की रचना -----


पिता पूंजी है

एफडी है

ड्राफ्ट है

ग्रेच्युटी है

जो सब हमे

बनाने में लगती है

उसके पास होती

है  सिर्फ पेंशन

बुढ़ापे की टेंशन।

2

मां घर है ..

पिता मकान

खेत खलिहान

औलाद के हाथों में

भविष्य का सामान।

3

पिता अनुशासन है

चुपचाप चलने वाला

शासन है..

जब हम कुछ नही

कह पाते

वो आंखे पढ़ लेता है

पर्स खोल देता है।।


4

पिता बीज है

अंकुर है

दिखता नहीं

न हो यदि

कोई खिलता नहीं।

5

पिता शाख है

साख है..

फैलता है

महकता है।।

6

पिता गुप्त प्रेम है

जब सो जाते हैं

उसके अंश

वह चुपके से आता है

अपलक देखता है..

निहारता है..

चमक जाती हैं उसकी

आँखें...हाँ...वाह

अपना अंश है।

वह बेटी का दहेज

बेटे का कैरियर है

वह पैदा नही करता

न दूध पिलाता है..

मगर..

सबको पालता है।।

✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी, मेरठ

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