बुधवार, 9 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दयानन्द गुप्त की कहानी --- नया अनुभव । यह कहानी उनके कहानी संग्रह श्रंखलाएं से ली गई है । यह कहानी संग्रह सन 1943 में पृथ्वीराज मिश्र द्वारा अपने अरुण प्रकाशन से प्रकाशित किया गया था ।


रामजीमल वास्तव में चोर नहीं था लेकिन जिसके यहाँ चोरी का माल पकड़ा जावे वह अपने को निर्दोष कैसे सिद्ध कर सकता है। अन्त में रामजी• मल के हजार कहने पर भी उसे चोरी में छह महीने की सजा हो ही गई। आज तक उसका अंञ्चल साफ था लेकिन जेल में पहुँच कर उसने सभी हुनर सीख लिये । वह चुटकी बजाते बजाते जेब काट सकता था, ताला तोड़ डालना उसके बायें हाथ का खेल था | ताश के पत्तों के खेल उसे एक से एक अच्छे आते थे । कौड़ियाँ फेंकने में वह इतना दक्ष होगया था कि जो दांव माँगता वही आता था । जैसे वह कुछ पढ़ कर कौड़ियाँ फेंकता हो । शराब, चरस, कोकीन, और भांग 0यह नशे उसके जीवन के साथी बन गये थे। सारांश कि जेल ने उसे पक्का सभ्य बना दिया था ।

       जेल से छूटने पर उसे अपने चारों ओर अन्धकार दिखाई दिया। अब कोई भी उसके साथ बैठकर बातचीत करना, हँसना और खेलना पसन्द नहीं करता था। उसके पहुँचने पर सभायें उजड़ जाती थीं । उसने नौकरी बहुत तलाश की लेकिन भला कौन सजा काटे हुए व्यक्ति को अपने यहाँ स्थान दे सकता था ? वह दर-दर मारा बेकार फिरा भूख ने उसके पेट और कमर एक कर दिया । व्यवसाय करने के लिए उसके पास धन नहीं था, वह यही सोचा करता था कि वास्तव में क्या मैं चोर हूँ | क्या संसार मुझे चोरी करने के लिए बाध्य नहीं कर रहा है ? एक बार वह एक बैंक में एक जगह खाली होने की खबर सुनकर आवेदन पत्र लिये पहुँचा। वह खजान्ची या रुपये पैसे रखने या लेने देने वाले काम की नौकरी नहीं माँग रहा था। वह सिर्फ बैंक में चपरासी होना चाह रहा था। आवेदन पत्र लिए मैनेजर के कमरे से वह लौट आया। बैंक में प्रमाण पत्र पाये हुए को जगह कहाँ ? इसी तरह वह एक बीमा कम्पनी के दफ्तर में चपरासी की नौकरी के लिए दरख्वास्त लिए ला रहा था | बरसात का मौसम था सड़क पर कुछ कीचड़ थी । वह पैदल अपना मार्ग पूरा कर रहा था कि बीमा कम्पनी के मैनेजर की मोटर सनसनाती हुई रास्ते से निकल गई । छींटों से उसके कपड़े खराब हो गये । उसने आसमान की ओर देखा और एक ठण्डी आह भरते हुए सोचा कि वह दिन कब आएगा कि जब हम सब आदमी एक दूसरे के बराबर होंगे ।

        जब वह बीमा कम्पनी के मैनेजर के पास पहुँचा तब वहाँ ने उसको धक्के देकर बाहर निकाल दिया । एक गन्दे आदमी को सने हुए जूते पहन कर दफ़्तर का फ़र्श खराब करने का क्या अधिकार हो सकता है ? सर्राफ़, बजाज, बिसाती, पंसारी या ऐसे ही और सौदागर एक चोर को अपने यहाँ किस तरह स्थान दे सकते थे ।

अब उसने भीख माँगने की ठानी ।

नर्बदा तालाब पर रहने वाले महात्माओं के शिष्य भिक्षाटन के लिये वैकुण्ठी कामर लेकर नगर में रोज सुबह दौरा करते थे और शाम तक आटा दाल चावल और बहुत सा घी और पैसे लेकर मठ को लौटते थे। कृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव पर वहाँ मठ में बड़ी धूमधाम से जल्सा होता था गाने बजाने के समारोह के साथ साथ श्रद्धालु भक्त चलते समय रुपये पैसे चढ़ाते थे । प्रयागदास एक मोटी थैली में उस दिन की आमदनी संभाल कर अन्दर रखने गए । रामजी भी भूखा गाना बजाना सुनता रहा । भूखे को ऐसे गाने बजाने से आनन्द ही क्या आ सकता है ? जब कृष्ण जन्म हो चुका और जनता चली गई तो रामजीमल ने महन्त प्रयागदास के चरण पकड़ लिए और उनसे कुछ खाना देने के लिए अनुनय विनय की । वह मिठाइयां और फल खाकर वहीं सोगया । महन्त जी और उसके शिष्यगण भी सो गये । रामजीमल ने उस बड़ी थैली को रुपयों और पैसों से ठसाठस भरा देखा था। माया ने उसकी आँखों की नींद हर ली थी । वह नींद का बहाना किये हुए लेटा रहा। अवसर पाकर वह महन्त जी की उसी कोठरी घुस गया, जहाँ वह मोटी थैली रखी हुई थी। मोटी रैली पाकर वह फूला न समाया | वह सोच रहा था कि अब एक महीने के लिए खाने का प्रबन्ध हो गया ।

      वह मठ से निकला पागल की तरह भागा सड़क पर चला जा रहा था । रास्ते में तालाब में स्नान करने को जाने वाले महन्तजी के कुछ भक्तों ने उसे चोर समझ कर पकड़ लिया, थैली इस समय भी उसके हाथ में थी। एक ने टार्च की रोशनी में थैली पहचानते हुए दूसरे से कहा । यह तो वही थैली मालूम होती है जिसमें महन्त जी रोज की आमदनी रखते हैं। दूसरे ने राम जी के हाथ से थैली छीन की । अव सब रामजीमल को पकड़ कर मठ में ले आये । महन्त जी इस समय भजन कर रहे थे। कुछ झुकमुका हो गया था। भक्तों ने रामजीमल को महन्त जी के सामने उपस्थित कर दिया और सब कहानी सुना दी । महन्त जी कुछ मुस्कराये और बोले आप सब ने इनके साथ बड़ा ही अन्याय किया | यह थैली इन्होंने चुराई नहीं थी। यह कई दिन के भूखे थे इसलिये मैंने यह थैली इन्हें दे डाली थी। उनमें से एक ने महन्त जी से पूछा कि आप भूल तो नहीं रहे हैं। महन्तजी नै दृढ़ स्वर में उत्तर दिया । नहीं थैली मैंने ही दी है। आप सब जाइये और इन्हें भी जाने दीजिये ।महंत जी के भक्त धीरे धीरे बाहर चले गये । रामजीमल हाथ में थैली थामे वहीं खड़ा हुआ महन्त जी की उदारता पर अचम्भा कर रहा था । यह उसके जीवन में एक नया अनुभव था ।

:::::::::::प्रस्तुति:::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

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