रोग के इस दौर में कोई किसी का ना हुआ ।
जिसको अपना मानते थे,वो भी अपना ना हुआ ।।
तंदुरुस्ती छीन लीं बीमारियों ने आजकल ,
नाज़ था जिसको बदन पर वो भी उसका ना हुआ ।।
उम्रभर जो धन बचाया, वो चिकित्सा में गया,
हमने धन को अपना समझा, वो हमारा ना हुआ ।।
फिर रहे हैं दर-बदर वे काम की करते तलाश ,
कौन है उनमें से ऐसा , जो कि रुसवा ना हुआ ?
दाम हर-इक चीज़ के आकाश को छूने लगे ,
वो ये कहते हैं कि दामों में इज़ाफ़ा ना हुआ ।।
दीखती रौनक़ नहीं है अब किसी बाज़ार में ,
लगता था बाज़ार अच्छा, वो भी अच्छा ना हुआ।।
उम्र बीती घर बनाने में है जिस मज़दूर की ,
उसके रहने के लिए कोई ठिकाना ना हुआ ।।
हर तरफ़ छाई उदासी आजकल 'ओंकार' है ,
अब तो बरसों से कहीं हंसना-हंसाना ना हुआ ।।
✍️ ओंकार सिंह'ओंकार', 1-बी-241 बुद्धि विहार, मझोला, मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 244001
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