रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अखिलेश वर्मा की ग़ज़ल ------लौटा नहीं कभी फिर जाकर पिता का साया


दे दे मुझे कोई तो ......लाकर पिता का साया

हैं खुशनसीब जिनके सर पर पिता का साया।


कोई नहीं है चिंता ......... कुछ फ़िक्र ही नहीं है

जिसको मिला है हर दम घर पर पिता का साया।


मिलते हैं शाम को जब ऑफिस से लौटकर तो

मिलता जहां है सारा पाकर पिता का साया ।


भगवान तू मुझे भी ......लौटा दे उस पिता को

जीवन बड़ा है मुश्किल खोकर पिता का साया।


सेवा करो पिता की .......कोई कसर न छोड़ो

लौटा नहीं कभी फिर जाकर पिता का साया।


✍️ अखिलेश वर्मा, मुरादाबाद

  

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