मंगलवार, 8 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम ने 6 जून 2021 को आयोजित की गूगल मीट पर काव्य-गोष्ठी

 साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में  रविवार 6 जून 2021 को गूगल मीट के माध्यम से  काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने की एवं मुख्य अतिथि के रुप में वरिष्ठ कवि श्रीकृष्ण शुक्ल उपस्थित रहे जबकि कार्यक्रम का संचालन जितेंद्र जौली ने किया। 

कार्यक्रम में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार रही - 

जीवन के तपते मरुथल में माँ गंगा की धार है। अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर माँ गीता का सार है।। 

कवि श्रीकृष्ण शुक्ल का कहना था  - 

 रात भले हो घोर अँधेरी, 

 उसकी भी सीमा होती है, 

 रवि के रथ की आहट से ही

  निशा रोज ही मिट जाती है। 

अशोक विद्रोही ने कहा - 

वनस्पति ,जंतु जगत, जलवायु मिल जाय। 

इन सबका  संतुलन ही, पर्यावरण कहाय।।

वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने अपना दर्द कुछ इस प्रकार बयां किया - 

 झूठ कहूँ तो मिलती इज़्ज़त, 

 सच बोलूँ तो गाली। 

 छोड़ के असली, दुनिया हो गयी, 

 नक़ली की मतवाली।।

डाॅ. मनोज रस्तोगी  की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार रही - 

सुन रहे यह साल आदमखोर है । 

हर तरफ बस चीख दहशत शोर है ।। 

मत कहो यह वायरस जहरीला बहुत, 

आदमी ही आजकल कमजोर है।। 

नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार की - 

चलो निराशा के ऊसर में 

एक हरापन रोपें भीतर। 

क्षणिक लाभ के लिए

 त्यागकर मानवता, 

 संवेदन सब कुछ 

 छल-फरेब ने गढ़े 

 स्वार्थ के कीर्तिमान, 

 सम्मोहन सब कुछ। 

 लुगदी-सी हो चुकी सोच में, 

 एक भलापन रोपें भीतर ।

 राजीव प्रखर ने कहा -

 दूरियों का इक बवंडर, जब कहानी गढ़ गया। 

 मैं अकेला मुश्किलों पर तान सीना चढ़ गया। 

 हाल मेरा जानने को फ़ोन जब तुमने किया, 

 सच कहूँ तो ख़ून मेरा और ज़्यादा बढ़ गया। 

 डॉ. रीता सिंह ने समाज को चेताते हुए कहा - कंकड़ पत्थर के जंगल में, 

तरूवर छाँव कहाँ से लाऊँ। 

तपस में तपती मीनारों की, 

कैसे अब मैं तपन मिटाऊँ ।

 कवयित्री इंदु रानी का कहना था -

  कोरोना यह लिख गयो, सबके मन के द्वार। वृक्षारोपण हो परम ,आक्सीजन आधार।।

 जितेंद्र जौली ने परिस्थितियों का चित्र कुछ इस प्रकार खींचा - 

कोरोना को मात दें, हम अब मिलकर संग।

 अपना भारत लड़ रहा, कोरोना के जंग।। 

 कवि प्रशांत मिश्र का कहना था  -

 जब अपना ही घर लूट लिया देश के गद्दारों ने, जनता खड़ी देखती रही सिमटी अपने किरदारों में। 

 कार्यक्रम में  विकास मुरादाबादी एवं मोनिका मासूम ने बतौर श्रोता उपस्थित रहकर सभी का उत्साहवर्धन किया। राजीव प्रखर द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया ।

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