सिर पर छाँव पिता की
कच्ची दीवारों पर छप्पर ...
आंधी बारिश खुद पर झेले,
हवा थपेड़े रोके
जर्जर तन भी ढाल बने,
कितने मौके-बेमौके
रहते समय समझ ना पाते
जाने क्यों हम अक्सर ....
सारी दुनियादारी जो भी
नजर समझ पाती है,
वही दृष्टि अनमोल,पिता के
साए संग आती है ..,
जिससे दुष्कर जीवन पथ पर
नहीं बठते थक कर,...
माँ का आंचल संस्कार भर,
प्यार दुलार लुटाए,
पिता परिस्थिति की बिसात पर,
चलना हमें सिखाए
करते सतत प्रयास कि बच्चे
होवें उनसे बढ़कर .....
-मनोज 'मनु'
मोबाइल- 063970 93523
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें