मैंने देखा, लल्ला आज पूरे राजसी ठाठ में दिखाई दे रहा है। मैंने पूछा, 'लल्ला, इतना बनठन कर आज कहाँ बिजली गिराने जा रहा है ?'
मेरे इस सवाल पर वह जैसे वायदा करनेवाले किन्तु बाक़ायदा वायदा न निभानेवाले आधुनिक प्रपंची अँगूठाछाप नेताओं के द्वारा छली गई पढ़ी-लिखी गंवार जनता के दिमाग़ी 'स्टैंडर्ड' पर बू-हू-बू-हू कर हँसने लगा । उसके इस तरह रस और अलंकारविहीन हँसने पर उसे कम, मुझे ज्यादा लज्जा का अनुभव हुआ। मैं अतिउच्चशिक्षित जो ठहरा !
अपना थोबड़ा गगनोन्मुख किए, ताकि होठों में दबी सुरती से प्राप्त उसके मुख का कहीं स्वाद न बिगड़ जाय, वह मुझसे बोला, 'चच्चा ! तुम परोफेसर हो या घनचक्कर ?' मिडिल एजुकेशन के पहले सोपान पर ही चार बार चित्त अपनी ' चाणक्येबिल' बुद्धि से रेलवे का ठेकेदार बनने से लेकर यूनियन का अगुआ बन जाने तक का सफर तय करनेवाले लल्ला के मुखारविंद से ऐसे सरस शब्द सुनकर मैं किंचित बौखला-सा गया, ' मतलब ?'
'मतबल जे परोफेसर साब ! भाषण देने जा रहा हूँ नरक...ऊँह, नगर निगम में । तमाकू निषेध दिवस है न आज, इसलिए'--लल्ला ने सुरती की पहली पीक थूककर कहा ।
प्रोफेसर होने के कारण अब मुझे दूसरी बार घोर लज्जा का अनुभव हुआ फिरभी साहस बटोरकर मैंने उससे पूछ ही लिया, 'लल्ला, तू खुद तम्बाकू का सेवन करता है, तू ही उसका सेवन न करने का लोगों को भाषण देगा...!' कमबख्त सुरती को खाये बिना उसे जैसे कोई फ़लसफ़ा न सूझता हो, अपने होठों में दबी सुरती को थूक तथा पुनः नवीन सुरती को रगड़ मुँह में फाँकते हुए मेरे कान में, तनिक निकट आकर वह बोला, 'चच्चा ! सब ढोंग है, ढोंग ! निरी नौटंकी ! दिखावा ! ! कबीर कहते -कहते मर गए । जरा बताओ, मस्जिदों में ऊँची आवाज़ में अजान देना बंद हुआ, क्या ? मन्दिरों में जोर-जोर से घण्टे-घड़ियाल बजने बन्द हुए, क्या ?'
मैंने देखा, लल्ला निरन्तर सीरियस होता जा रहा है । सुरती को थूक अंगोछे से मुँह को साफ करते हुए करीब तीस सेकेंड का इंटरवेल लेने के बाद उसने स्टेशन पर किसी ट्रेन के आने की सूचना देनेवाली कम्प्यूटराइज़्ड लेडी एनाउंसर की तरह लगातार बोलना जारी रक्खा, 'देखो, चच्चा ! सीधी और सपाट बात है। तमाकू बेचने और बिकवाने का धंधा जब सरकार खुद करवा रही है तो तमाकू खाने से नुकसान पर बेहूदा प्रवचन क्यों ? चच्चा, कोई ऐसा भी है जिसका खुले माल पर जी न ललचाए ? यह तो किसी को गड्ढ़े में धकेल फिर बाहर निकालनेवाली मसल हुई न ? या तो गड्डा खोदो मत। खोदोगे, कोई-न-कोई उसमें गिरेगा तो जरूर।'
किसी शोध-प्रबंध का समाहार लिखनेवाले अनुसन्धितसु की भांति मैंने निष्कर्ष निकाला कि लल्ला ने जो कुछ कहा उसमें सौ फीसदी सच्चाई है। पिछले बाईस सालों से प्रतिवर्ष अतंर्राष्ट्रीय तम्बाकू निषेध दिवस पर तम्बाकू के ख़तरों के प्रति लोगों को जागरूक करने के बाद भी हर साल करीब सत्तर लाख लोग तम्बाकू की कब्र में दफन होने पर अब आम लोगों को नहीं, सरकारों को जागरूक करने की गहरी आवश्यकता है।
....मैं अपने चिंतन को और विस्तार देता, सहसा मेरे कन्धे पर किसी ने हाथ रक्खा। देखा, मेरा वही ज़ाहिल भतीजा लल्ला अपने श्रीमुख पर फैली हँसी की आड़ी-तिरछी तरंगों से उद्भूत शब्दों से जैसे मेरी प्रोफेसरी पर व्यंग्य कर रहा हो ! बोला, 'अच्छा, चलता हूँ। तुम्हारे चक्कर में चाय-समोसों से भी हाथ धो बैठूंगा ।'
और, वह पुनः सुरती को होठों में ठूंसते तम्बाकू निषेध दिवस पर प्रवचन देने के लिए चल पड़ा ।
✍️ डॉ जगदीश शरण, 217, प्रेमनगर, लाइनप, माता मंदिर गली, मुरादाबाद-- 244001, उत्तर प्रदेश, भारत
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