बुधवार, 2 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की कविता ---रथ पर चढ़ो----------


हे!

भारत महान

तुम्हें मिलते रहते हैं

दीपक भी,

घंटे-घड़ियाल

और थाली भी।

तुम!कितने महान हो 

कुछ बोलते ही नहीं

खाते रहते हो गाली भी।।

ऐसी क्या विवशता है

जो तुम,

जी लेते हो घुट-घुटकर भी।

सहनशीलता तुमने

त्यागी ही नहीं

लुट-लुटकर भी।।

अब,

ये वाली महानता तो

छोड़ ही दो।

शांति दूत मौनी बाबा!

बेचारी शांति की सोचो

और,मौन

तोड़ ही दो।।

कुछ शाश्वत भी है

जिसे,

गिल्ली-डंडा खेलने वाले

बच्चे भी खूब जानते हैं।

लातों के भूत

बातों से नहीं मानते हैं।।

सहनशीलता से

सुचेष्टाओं की

कुचेष्टाओं पर

जीत नहीं होती है।

तुलसीदास की मानों

भय बिन प्रीत नहीं होती है?

यह किस्सा नहीं है केवल

आज का, अभी का।

तुम तो सम्मान 

करते आ रहे हो सभी का।।

फिर भी,

कुछ आगबबूले

तुमसे,

स्थाई रूप से क्रुद्ध हैं।

उन्हें ही,

झेले जा रहे हो

जिन्होंने तुम्हारे भीतर

जमकर, 

बैठाए कई युद्ध हैं।।

तुमने गीता सुनी थी

उसी को फिर से पढ़ो।

सारथी कृष्ण हैं तुम्हारे

रथ पर चढ़ो----------।।

✍️ डॉ.मक्खन मुरादाबादी, नवीन नगर ,कांठ रोड, मुरादाबाद 244001

Email:

 makkhan.moradabadi@gmail.com

Mobile: 9319086769

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