माही को बाहर बाइक के पास छोड़ विक्रम मोबाइल रिपेयरिंग शॉप के ऊपरी तल पर अपना मोबाइल लेने गया हुआ था।माही बाइक से टेक लगाकर अपना मोबाइल देखने लगी।तभी एक आठ-दस साल का लड़का उसके सामने कटोरा फैला कर बड़ी मासूमियत से गिड़गिड़ाने लगा,"आंटी जी!दस रुपए दे दो। बहुत भूख लगी है।" माही ने मोबाइल से नज़र हटाकर उसे बड़े ध्यान से देखा।एक आम भिखारी की तरह ही उसका चेहरा कान्तिहीन और मैला था।लेकिन उसके भीख मांगने के लहजे में माही को कहीं भी दयनीयता नहीं दिखी।उसके कटोरे में दस-दस के दो नोट थे,माही के देखते ही लड़के ने जल्दी से वे नोट अपनी नेकर की जेब में ठूंस लिये और दूसरा हाथ जिसमें एक पॉलीथिन में बिस्किट और कुरकुरे का पैकेट था वह पीछे की ओर कर लिया।
माही ने सब कुछ अनदेखा करके बड़े प्यार से उस लड़के की तरफ देखा और अपनी आदत के अनुसार उस बच्चे को समझाने लगी,"तुम स्कूल क्यों नहीं जाते हो,बेटा? अब तो थोड़ी थोड़ी दूर पर सरकारी स्कूल हैं।वहाँ खाना,ड्रेस,बस्ता सब मिलता है।तुम्हें स्कूल जाना चाहिए,भीख मांगना गंदी बात होती है।"
"आंँटी पहले मैं पढ़ता था गाँव में।अब हम अपना गाँव छोड़ के आ गये न तो अभी दाखला नहीं लिया।पर मैं जाऊँगा स्कूल कल से, सच्ची।तुम दस रुपए दे दो।" लड़का वाकपटु था।पड़ी लिखी आधुनिक महिला माही भीख देने के सख्त खिलाफ थी और उपदेश वह मुक्त कंठ से बाँटती थी।फिर भी उस लड़के के बातूनीपन से रीझकर वह उसे दस रूपए देने की सोच ही रही थी कि एक पंद्रह सोलह साल की लड़की डेढ़-दो साल के एक छोटे बच्चे को गोद में लिये और दूसरे हाथ से कटोरा पकड़े वहाँ आकर रुकी।ठीक उसी तरह का संवाद उसने भी दोहराया जो उस लड़के ने बोला था।माही ने भी फिर वहीं स्कूल जाने वाली बात दोहरायी तो लड़की उसे अजीब से घूरने लगी।इधर वह लड़का जल्दी में था उसने एक आखिरी कोशिश करनी चाही,"आंँटी दस रुपए दे दो न।"
माही कुछ कहती या देती इससे पहले ही वह भिखारिन युवती उस लड़के को पीठ पर धौल देकर खदेड़ती हुई बोली,"चल रे लक्की,आगे बढ़।ये न देने की कुछ भी।पढ़ाई की बात कर री हैं।हमें नहीं पढ़ना।हम तो पढ़ाई छोड़ के आये हैं।हम तो भीख ही मांगेंगे।इनसे मलब।बड़ी आयी सिखाने वाली।पढ़ा के नौकरी दिला देंगी क्या?हमारे अब्बा पढ़ें हैं दसवें तक।भीख माँगते हैं,अब पढ़ाओ उन्हें भी।बात बतायेंगी बस।" इस तरह लताड़कर जाती हुई उस मुँहफट भिखारिन को माही अवाक देखती ही रह गयी।
✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद
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