शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की कहानी -----पिता समान भाई

               
    ‘’पापा, आज कालेज से लौटते समय आप किताब वाले से निबंध मंजूषा ले आना,  मुझे लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी में सोच रही हूँ निबंध का अभ्यास भी साथ साथ करती चलूँ।’’
दीप्ति ने कालेज जाने के लिए साइकिल साफ़ करते हुए अपने पिता राम स्वरूप से कहा। ’’ठीक है ,बेटा और कुछ’’ रामस्वरूप के प्रश्न के उत्तर में दीप्ति ने न में सिर हिलाया तो राम स्वरूप ने अपनी साइकिल कालेज की तरफ़ दौड़ा दी।
 राम स्वरूप क़स्बे के एक राजकीय इंटर कालेज में हिंदी के अध्यापक थे। उनका बड़ा बेटा दीपक जो एम एससी गणित से पढ़ाई पूरी कर के नेट की तैयारी में जुट गया था। बेटी दीप्ति बीए फ़ाइनल में थी। दीप्ति मेधावी छात्रा थी वह हमेशा कक्षा में अव्वल आती थी। उसका सपना अधिकारी बनने का था इसलिए वह लोक सेवा आयोग की तैयारी में अभी से जुट गयी थी।
    राम स्वरूप की चाहे तनख्वा  कम थी पर वह बेटी की तैयारी के सामने पैसों की तंगी को नही आने देता थे। सब अध्यापको ने धीरे धीरे स्कूटर ले लिया परंतु वह अपनी साइकिल के साथ ही खुश थे। पत्नी ने एक बार कहा भी कि स्कूटर ले लो। बहुत दूर पड़ता है कालेज तो उन्होंने कहा एक बार बच्चे कामयाब हो जाए उसके बाद ही कुछ सोचेंगे।
      कालेज से लौटते समय उन्होंने स्टूडेंट बुक डिपो से निबंध मंजूषा खरीदी और घर की ओर चल दिये । अचानक तेज़ गति से सड़क पर दौड़ती कार रामस्वरूप की साइकिल को रौंदती हुई चली गयी। हादसा होते ही भीड़ जमा हो गई । लोग आनन-फानन में उन्हें अस्पताल ले जाने लगे कि रास्ते में ही मास्टर साहब ने दम तोड़ दिया। उनकी मृत्यु से पूरे घर में हाहाकर मच गया।
    राम स्वरूप राजकीय कालेज में थे जिस कारण दीपक को मृतक आश्रित में पिता की जगह नौकरी मिल गयी परन्तु बीएड न होने के कारण उसे कालेज में लिपिक के पद पर नियुक्ति मिली।
   दीप्ति जब कभी पिता को याद कर रोती तो दीपक कहता -बड़ा भाई भी पिता समान होता है तू क्यों चिंता करती है।  मैं तो
डिग्री कालेज में शिक्षक नहीं बन सका लेकिन तुझे अधिकारी जरूर बनाऊंगा ।
 धीरे धीरे एक साल गुज़र गया। दीप्ति की ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी हो गयी। इसबार भी वह हमेशा की तरह अव्वल रही। अब वह अपने सपने को पूरा करने के लिए लोक सेवा आयोग परीक्षा की तैयारी में जी-जान से जुट गयी। वहीं दीपक के लिए एक अच्छा रिश्ता आया और बिना देर किए माँ ने उसकी शादी कर दी। दीपक ऋचा जैसी सुन्दर पत्नी को पाकर बहुत खुश था।ऋचा ने घर में आते ही सब पर अपना होल्ड कर लिया। दीपक के स्वभाव में भी परिवर्तन आने लगा था।
    एक दिन ऋचा ने  शिकायत भरे लहजे में दीपक से कहा - "आपकी बहन पूरे दिन किताबों में ही लगी रहती है। अगले घर जायगी। कुछ काम काज घर का भी सीखना आना  चाहिए।’’  दीप्ति किताब पढ़ते पढ़ते ऊब भी जाते हैं इसलिए थोड़ा घर का काम भी कर लिया करो। दीपक ने समझाने के लहजे में दीप्ति से कहा। ठीक है भैया- कहते हुए दीप्ति ने कहा, भैया मुझे लोक सेवा आयोग की परीक्षा देनी है । उसकी तैयारी के लिए एक किताब की जरूरत है 460 रुपये की आएगी। इतना सुनते ही ऋचा बोली कोई किताब नहीं आ रही है।  अभी तुम्हारी शादी भी करनी है सारे घर का बोझ इनके कंधों पर ही आ गया है।
पर भाभी केवल 460 रुपए की तो बात है, धीमे से दीप्ति ने कहा।
क्यों..?  पैसे पेड़ पर उगते हैं क्या। सारा  दिन ये मेहनत करते हैं तब घर चलता है। ऋचा लगभग चिल्लाते हुए बोली। दीप्ति ने उम्मीद भरी निगाहों से दीपक की और देखा और कहा -भैया.............!!! इससे पहले कि वह कुछ कहती,  दीपक ने नज़रें नीचे कर ली।
    दीप्ति समझ गयी कि अब उसे ही अपने और अपने पिता के सपने को पूरा करना है। दीप्ति पढ़ाई लिखाई में तो होशियार थी ही ,उसने घर पर बच्चों को ट्यूशन देना शुरू कर दिया ।अब वह अपने लक्ष्य को पूरा करने में जुट गयी। उसने दिन रात मेहनत की ।उसके पिता  का आशीर्वाद उसके साथ था जिस कारण उसने पहले ही प्रयास में प्री,मेंस और साक्षात्कार परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रदेश में तीसरी रेंक प्राप्त की ।घर में बधाई देने के लिए मोहल्ले पड़ोस के लोग आने लगे।सब दीप्ति की तारीफ़ करते न थकते कि मास्टरजी की लड़की ने उनका नाम रोशन कर दिया।न्यूज़  चैनल  वाले भी आ गए । उन्होंने दीप्ति से पूछा कि वह अपनी सफलता का श्रेय किसे देती है । दीप्ति ने  भैया -भाभी की तरफ देखते हुए कहा ’’ईश्वर और स्वर्गीय पिता जी के आशीर्वाद और अपने भैया-भाभी के सहयोग से ही यह हो पाया।
यह सुन कर दीपक और ऋचा की आँखो में आँसू आ गए।न्यूज़ चैनल वालों के जाने के बाद दीपक ने दीप्ति से माफ़ी माँगी,’’बहन मैं तेरा पिता न बन सका ।मुझे माफ़ कर दो ।
’’नही भैया ऐसा न कहो ।आपने तो मुझे अपने पर भरोसा करना सिखाया तब ही मैं साक्षात्कार को आत्मविश्वास से दे पायी ।मैं जानती हूँ आप हमेशा मेरा भला ही सोचते है ।बड़ा भाई तो पिता समान होता है ।अब जाइए बाज़ार से लड्डू ले आइए मुझे प्रसाद चढ़ाने मंदिर जाना है ।’’
दीप्ति ने भी हँसकर दीपक से कहा।’’क्यूँ हम भी खायेंगे और पूरे मोहल्ले में भी बाँटेंगे ।आप देसी घी के ख़ूब सारे लड्डू लाना ।आख़िर मेरी प्यारी ननद अधिकारी बनी है ।जाइए जल्दी जाइए ।’’ऋचा की इस बात को सुनकर सब हंसने लगे। पूरे परिवार में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी।
                 
 प्रीति चौधरी, शिक्षिका
राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज, हसनपुर
जनपद अमरोहा।

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