टिकट प्लीज: टीटीई अमर के सामने खड़ा था।
ओह, हाँ, ये लीजिए,
ये तो जनरल टिकट है, आप इसमें कैसे चढ़ गये, टीटीई गुर्राया।
अरे सर जी क्या करें, रिजर्वेशन कंफर्म नहीं हुआ था, जनरल डिब्बों में घुसने की भी जगह नहीं थी। जाना जरूरी था इसलिए इसमें चढ़ गये। आप हमारा टिकट बना दीजिए।
हूँ, यहाँ कोई सीट खाली नहीं है, पैनल्टी सहित सात सौ रुपये की रसीद कटेगी और सीट भी नहीं मिलेगी। आप ऐसा करना अगले स्टेशन पर उतर जाना।
अरे बाबूजी, जाना तो जरुरी है, आप हमारी रसीद ही काट दीजिए।
ठीक है, कहते हुए वह बोला, अच्छा ऐसा करो आप पाँच सौ रुपये दे दो और आराम से जाओ।
नहीं नहीं बाबूजी, आप रसीद ही काट दो।
और टीटीई ने रसीद काट दी जो साढ़े चार सौ रुपये की थी।
आश्चर्य की बात तो ये थी कि अगले स्टेशन पर ही टीटीई ने उसे बर्थ भी दे दी।
अमर बर्थ पर जाकर लेट गया।
उधर टीटीई रात भर प्रत्येक स्टेशन पर यात्रियों को रसीद काटने की धौंस देता हुआ वसूली करता रहा।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद
मोबाइल नं. 9456641400
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें