बुधवार, 29 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा की लघुकथा ------ मोहभंग


       राधा ने रिटायर्ड होते ही सोच लिया था कि अब बस ,  बहुत हुआ काम - धाम , अब थोड़ा ध्यान प्रभु सेवा में लगाएगी । सुबह पाँच बजे उठकर हड़बड़ - हड़बड़ सारे घर का काम निपटा कर , जब वो दौड़ती भागती स्कूल बस पकड़ती थी तो सामने के मंदिर से पूजा करके लौट रही पड़ोस की औरतें हाथ में पूजा की डलिया लटकाए उसे देख यूँ  मुस्कुरातीं थीं मानो वो नौकरी के लिए नहीं सिनेमा देखने के लिए निकली हो ।कोई - कोई तो कह भी देती थी भई  तुम्हारे तो मजे हैं सुबह - सुबह तैयार होकर निकल पड़ती हो , एक हम हैं सारा दिन वही चूल्हा - चौका ।   
         बस की सीट पर पीठ टिकाते हुए उसकी आँखें छलक जातीं चूल्हा - चौका क्या उससे छूट गया है । घर - बाहर की दोहरी जिम्मेदारी कभी - कभी कमर तोड़ कर रख देती थी ।अब बस , कुछ नहीं करेगी वो , बहु है , बेटियाँ हैं , उन पर कुछ जिम्मेदारियाँ डाल वो भी सुबह नहा - धोकर मंदिर जाएगी । भजन - कीर्तन करेगी , कथाएँ सुनेगी ।
        दो - चार दिन में ही नई दिनचर्या उसे बेहद सुकून देने लगी । चाहे बच्चे और पतिदेव कनखियों से उसे देख मुस्कुरा उठते थे । पर उसने परवाह नहीं की वो तो परम आनंद से अभिभूत हो रही थी । पहले अगर किसी के घर से कथा - कीर्तन का बुलावा आता तो थकान के कारण वह टाल जाती थी पर अब शाम का इंतजार बेसब्री से करती ।
       मंगलवार का दिन था , पड़ोस में सुंदर कांड का पाठ था तत्पश्चात कुछ भजन कीर्तन था । बड़े मनोयोग से तैयार हो वो समय से पहुँच गई । पाठ के मध्य कई बार पंडित जी ने झुंझलाते हुए कई महिलाओं को बातें ना करने और शांत हो पाठ करने के लिए कहा । पर पाठ के बाद तो उस वाक्पटु मंडली ने सारी हदें पार कर दीं । साड़ी से लेकर गहनों तक , बहुँओं से लेकर सासों तक उन्होंने कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा । कथा की तरफ़ किसका ध्यान जाता  ,   परनिंदा का जो अमृत रस कानों को तृप्ति दे रहा था  उस की तुलना पंडित जी के प्रवचन से हरगिज़ नहीं की जा सकती थी ।
राधा ने अपने कान बंद कर आँखें मींच भरसक प्रयत्न किया कि वह अपना ध्यान पंडित जी की बातों में लगाए पर विघ्नकर्ताओं के प्रयासों पर पानी नहीं फेर पाई । एक घंटे के अंदर ही राधा के कान और दिमाग दोनों थक गए । घर जाने के बाद भी उन बातों का असर दिमाग पर छाया रहा ।
      अगले दिन से मंदिर में भागवत सप्ताह शुरू हुआ ।  कथा वाचक ने बड़े ही सुंदर ढंग से कई प्रसंग सुनाए पर रंग में भंग डालने वाली मंडली यहाँ भी थी । कई बार टोके जाने पर भी ये नहीं मानी और आपस में तू - तू मैं - मैं और शुरू हो गई । राधा अब ऊबने लगी , कीर्तन  में बैठ भजन सुनने के बजाए घर में बैठ भजन गाने का निर्णय ले वो घर की ओर लौटने लगी ।
   

सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद


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