वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा मुरादाबाद के गुज़र चुके बड़े साहित्यकारों को "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत 12 जुलाई को हास्य व्यंग्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी की पुण्यतिथि पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई । ग्रुप के सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा की। चर्चा दो दिन चली।
सबसे पहले ग्रुप के सदस्य वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने
हुल्लड़ मुरादाबादी के जीवन के बारे में बताया कि हास्य व्यंग्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी एक ऐसे रचनाकार रहे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल श्रोताओं को गुदगुदाते हुए हास्य की फुलझड़ियां छोड़ीं बल्कि रसातल में जा रही राजनीतिक व्यवस्था पर पैने कटाक्ष भी किए। सामाजिक विसंगतियों को उजागर किया तो आम आदमी की जिंदगी को समस्याओं को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया। हिंदी के हास्य कवियों की जब कभी चर्चा होती है तो उसमें हुल्लड़ मुरादाबादी का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। कवि सम्मेलन हो या किसी पत्रिका का हास्य विशेषांक छपना हो तो हुल्लड़ मुरादाबादी का होना जरूरी समझा जाता था । रिकॉर्ड प्लेयर पर अक्सर उनकी रचनाएं बजती हुई सुनने को मिलती थीं । दूरदर्शन का कोई हास्य कवि सम्मेलन भी हुल्लड़ जी के बिना अधूरा समझा जाता था। इस तरह अपनी रचनाओं के माध्यम से हुल्लड़ मुरादाबादी ने पूरे देश में अपनी एक विशिष्ट पहचान कायम की
चर्चा शुरू करते हुए विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि " हुल्लड़ विशुद्ध हास्य कवि थे काका हाथरसी की परम्परा के ।मेरे भीतर हास्य-व्यग्य कवि की जो छवि बेढब बनारसी ,चोंच बनारसी ,भैया जी बनारसी ,रमई काका या विद्रोही जी की रचनात्मकता से बनी थी वह अलग थी।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि हुल्लड़ जी का स्मरण करने का अर्थ है मुरादाबाद के साहित्यिक पन्ने पलटना। मै स्वयं हुल्लड़ जी के प्रारम्भिक रचनाकार का साथी रहा हूं। हुल्लड़ जी ने हास-परिहास नाम से संस्था का संचालन किया था।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि मैं सन् १९७० में ही अपनी मित्र मंडली के साथ हुल्लड़ जी के संपर्क में आ गया था। देश-विदेश में अपने हास्य से लबरेज व्यंग्य-विनोद के लिए विख्यात मुरादाबाद के कवि हुल्लड़ जी का प्रयाण दिवस था। उन्हें, उनके साथ जुड़ी स्मृतियों की हर खिड़की से कोटि-कोटि नमन।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि मुझे उनसे सदैव बड़े भाई का प्यार मिला। मैं उनके पारिवारिक सदस्य की तरह था। हुल्लड़ जी मंच के स्टार थे। लोग उनको सुनने के लिए देर रात तक बैठे रहते थे। महानगर में विशेष अवसरों पर आयोजित होने वाले साहित्यिक कार्यक्रमों में वह मुझे अपने साथ ले जाते थे।
कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि वे अपनी चुटिले व्यंग कविताओं में हास्य का अनोखा पुट देकर श्रोताओं को हंसाने और तुरंत गंभीर करने की कला में माहिर थे। जिन समस्याओं को हुल्लड़ जी ने काफी पहले अपनी कविताओं के द्वारा सचेत किया था वे आज शत प्रतिशत हमारे सामने है।
प्रसिद्ध कवियत्री डॉ पूनम बंसल ने कहा कि आदरणीय हुल्लड़ मुरादाबादी जी को मैं अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूं। ये मेरा सौभाग्य है कि मैंने उन्हें मंच से सुना है उनकी प्रस्तुति कि विशिष्ट शैली थी जो सबको आकर्षित करती थी।
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मुरादाबाद की धरती सौभाग्यशाली है कि यहाँ हुल्लड़ जी जैसे रचनाकार हुए जिन्होंने अपने रचनाकर्म से यहाँ की प्रतिष्ठा को विश्व भर में समृद्ध किया। उनकी रचनाएँ हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण धरोहर हैं। उनकी रचनाओं में ऐसी तासीर है कि लोग आज भी उन्हें सुनकर या पढ़ कर ठहाके लगाने पर विवश हो जाते हैं।
समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि उनकी रचनाएं पढ़ने के बाद अंदाजा होता है की हुल्लड़ जी की मकबूलियत का राज उनकी भाषा में छिपा हुआ है। उन्होंने आम आदमी के दुख दर्द को समझा और उसी की भाषा में पेश करके यह सिद्ध कर दिया कि साहित्य समाज का दर्पण होता है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना यह है कि हुल्लड़ जी मूल रूप से एक हास्य-व्यंग्य के कवि थे और हास्य-व्यंग्य भी ऐसा जो गूढ़ साहित्यिक शब्दों एवं नियमों के बंधन से मुक्त रहते हुए, आम जनमानस की भाषा-शैली में, जीवन की समस्याओं को उठाने एवं उनके सशक्त हल प्रस्तुत करने में सक्षम रहा।
कवि श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि देश की शिक्षा पद्धति और बेरोजगारी पर इतना तीक्ष्ण व्यंग इतनी सहजता से हास्य के तड़़के के साथ प्रस्तुत कर देना ही हुल्लड़ जी के लेखन की विशिष्टता थी, और इन्हीं रचनाओं के प्रस्तुतिकरण का उनका विशिष्ट अंदाज उन्हें श्रोताओं के ह्रदय तक पहुँचा देता था।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि हुल्लड़ जी को सुनना,पढ़ना चेहरे पर मुस्कान ला देता था,लेकिन यह हास्य फूहड़ नहीं था और न ही केवल मनोरंजन मात्र।वे समाज की विद्रुपताओं को हास्य की कोटिंग में लपेटकर इस तरह पेश करते कि जब यह कोटिंग उतरती तो विद्रुपताओं का नग्न स्वरूप मस्तिष्क को कचोटने लगे और हम सोचने को मजबूर हों।वे निश्चित ही हास्य व्यंग्य के बड़े रचनाकार थे।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि अनोखी शैली, चुटीले व्यंग्य और चुटकुलों पर पूरी तुकांत कविता कह देने वाले शब्दों के जादूगर थे हुल्लड़ मुरादाबादी। केवल 8 साल की उम्र में ही मेरा जब कविता से परिचय हुआ तो लगा कि कवि केवल काका हाथरसी, सुरेंद्र शर्मा और हुल्लड़ मुरादाबादी ही होते हैं। उनकी एक-एक रचना ज़बरदस्त हास्य और व्यंग्य का नमूना है।
युवा शायरा मोनिका मासूम ने कहां कि उनकी रचनाएं साधारण जनमानस के जीवन की समस्याओं ,समाज में पांव पसार थी विषमताओं पर आधारित होती थीं इसलिए उससे अपने आपको जोड़ पाना बहुत आसान हो जाता था । उनकी हास्य व्यंग्य की रचनामन मस्तिष्क पर अपनी छाप छोड़ जाया करती हैं। और मन में प्रसन्नता के हिलोर उठा देती हैं।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि हैरत होती है कि क्या आसान ज़बान, क्या आम बोलचाल की हिंदुस्तानी ज़बान का इस्तेमाल हुल्लड़ जी ने अपने यहां किया है। तो उसका सबसे अच्छा जवाब उनकी ग़ज़लें हैं और ग़ज़लों की यह ज़बान है।
::::::प्रस्तुति::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225
ऐतिहासिक आयोजन
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