शनिवार, 18 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा की कहानी-------दाग


" छोड़ दो मुझे , छोड़ दो , छोड़ो , छोड़ो " मधुरिमा की चीखें छत फाड़ रहीं थीं । दो - दो डाॅक्टर  चार नर्सें माता - पिता ,भाई - भाभी सब मिलकर भी उसे संभाल नहीं पा रहे थे । उसके शरीर में दर्जनों घाव थे पर वो खुद पर काबू नहीं पाने दे रही थी । बार - बार उठकर बाहर की तरफ भागती थी । डाॅक्टर्स उसे नींद के इंजैक्शन्स दे - देकर थक गए थे । चारों नर्सों को सख्त हिदायत थी कि हर वक्त चौकन्ना रहें वरना जरा  सा भी होश आते ही मधुरिमा फिर वहीं दोहराती थी । उसका बेहोश रहना ही फिलहाल सबको सही लग रहा था । पुलिस के दो कांस्टेबल पहरे पर थे । खुद कमिश्नर साहब चक्कर काट गए थे । अन्य पुलिसकर्मियों को सख्त हिदायत थी कि जब तक डाॅक्टर ना कहें बयान लेने की हड़बड़ी ना की जाए । मामला संगीन था और लड़की की हालत सुधर नहीं पा रही थी । माता - पिता , भाई - भाभी सब दो दिन से निराहार सूजी हुई आँखें लेकर अस्पताल में बैठे हुए थे ।
      मैडिकल काॅलेज के फाइनल इयर की होनहार छात्रा थी मधुरिमा । जितना प्यारा नाम उतनी ही प्यारी शक्ल । विधाता ने रूप भी भरपूर दिया था । चुलबुली इतनी कि आते - जातों को हँसाती थी । कोमल ऐसी के हर किसी के दुख - दर्द को अपना कर उसे दिलासा देने लगती । पूरे घर की लाडली थी मधुरिमा । पर आज जिस हाल में थी आईना भी पहचानने से मना कर रहा था ।
       शाम के लैक्चर के बाद थोड़ा सा धुंधलका हो गया था । बादल घिरते देख मधुरिमा ने बस की जगह आज आॅटो ले लिया । पाँच मिनट के अन्दर ही बारिश ने विकराल रूप ले लिया था । सड़कों की रौशनी गुल थी । मधुरिमा मोबाइल से लगातार घर पर बात कर रही थी । बताती जा रही थी कि वो जल्दी ही घर पहुँच जाएगी कि अचानक बात करते - करते उसे लगा कि आॅटो ड्राइवर भी फोन पर किसी से बात कर रहा था । कुछ दूर चलने के बाद आॅटो एक झटके से सड़क के किनारे रुका और दो आगे , दो पीछे एकसाथ चार पाँच लोग उसमें चढ़े । मधुरिमा के विरोध की आवाज बारिश के शोर में दब गई । जब तक वो संभलती आॅटो रफ्तार पकड़ चुका था और उसके दोनों तरफ बैठे आदमियों में से एक ने उसके मुँह पर अचानक रुमाल रख दिया था ।
      अगली सुबह सड़क के किनारे पर औंधे मुँह बेहोश पड़ी मधुरिमा को कैसे किसी ने उठाया , अस्पताल पहुँचाया कुछ नहीं पता । कैसे रात भर अचानक उसके मोबाइल के डिस्कनैक्ट होते ही बेचैन माँ , पापा , भइया भाभी ने रात बिताई  बयां करना बड़ा मुशकिल है । भइया दो चक्कर पुलिस चौकी के भी काट चुके थे पर कोई सुनवाई हो तब ना । और अब दो दिन से पुलिस पीछा ही नहीं छोड़ रही थी । जिसने बयान देना था वो तो बेहोश पड़ी थी तो उन्होंने परिवार की जान खा रखी थी । वो तो भला हो डाॅक्टर्स का जिन्होंने वार्ड के पास किसी के भी आने पर रोक लगा रखी थी ।
             शरीर के घाव गहरे और पीड़ादायी थे पर अब मन पर जो घाव लगा था वो शायद नासूर बन जाने की हद तक भयानक और खतरनाक था ।
        पर पाँचवें दिन मधुरिमा ने अपने डाॅक्टर से मिलने की इच्छा जाहिर की । वो और डाॅक्टर कमरे में करीब एक घंटे तक अकेले कुछ बातें करते रहे । बाहर आकर डाॅक्टर साहब ने सिर्फ इतना कहा  " कोई डर नहीं , वो बहुत हिम्मती है ।"  " बस आप लोग कोशिश करके थोड़ा नार्मल बिहेव ( बर्ताव ) करें । " और मधुरिमा को डिस्चार्ज मिल गया । घर आए अब उसे एक महीना हो गया था ।
     मधुरिमा के परिवार वाले समझ ही नहीं पा रहे थे कि वो खुद का बर्ताव नार्मल कैसे रखें । जिनके घर की बेटी के साथ एक - दो नहीं कई दानवों ने दरिंदगी की हो वो सिर उठा कर बाहर कैसे निकलें ? समाज की नुकीली नजरों का सामना कैसे करें ? भइया आॅफिस नहीं जा पा रहा था । कोशिश करता पर तैयार होकर फिर घर बैठ जाता । पापा भी अब शाम को दूध लेने नहीं जाते थे । माँ ने मन्दिर जाना बन्द कर दिया था ।
        पर एक दिन सुबह मधुरिमा तैयार होकर कमरे से बाहर आई और बोली  " माँ - पापा मैं काँलेज जा रही हूँ । " तो सारा परिवार सन्न रह गया । किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी कि इतने बड़े हादसे के बाद मधुरिमा काॅलेज  जाएगी । उसकी माँ सुबक उठी " बच्चे अब जीवन भर का दाग लग गया तुझ पर , क्या मुँह लेकर बाहर निकलेगी । " " कैसे सामना करेगी दुनिया का ।"  "  तेरी  इज्जत की तो धज्जियाँ उड़ा दीं हैं उन दरिंदों ने ।" 
          " नहीं माँ , कुछ नहीं हुआ है ऐसा ।" मधुरिमा ने बड़े शांत भाव से जवाब दिया  " माँ मुझपर कोई दाग नहीं लगा है । "  " मैं अब भी वैसी ही हूँ जैसी पहले थी ।"  " मेरे साथ जो हुआ वो एक दुर्घटना थी बस ।"  " जैसे बाकियों के साथ ऐक्सिडैंट होता है मेरे साथ भी हुआ " " जैसे सबका शरीर जख्मी होता है वैसे ही मेरा भी हुआ "  " फर्क क्या है माँ  ? "  " जैसे सबके घाव भरते हैं मेरे भी भर गए । "  " रही बात उन दरिंदों की तो पुलिस अपना काम कर रही है ।"

  " किसी इन्सान की इज्जत उसकी शख्सियत से होती है माँ,  उसके संस्कारों और परवरिश में  छुपी होतीं है ।"  " किसी भी दुर्घटना में हुए   अंग-भंग  से इज्जत का कोई लेना- देना नहीं है ।"
    " मेरा फाइनल इयर है माँ , बचपन से लेकर आज तक  मैंने जो मेहनत करी है , एक सफल डाॅक्टर बनने का जो सपना देखा है उसे मैं एक हादसे की वजह से मिट्टी में नहीं मिला सकती । "  " चन्द पाशविक पुरुषों का शारीरिक अत्याचार मेरे अन्तर्मन की प्रेरणा को हरा नहीं सकता , मुझे अपने सपने को हर हाल में पूरा करना  है ।"  " दाग तो समाज की मानसिकता पर लगा हुआ है माँ , मुझपर नहीं ।"  " और समाज की मानसिकता पर लगे दाग तभी मिटेंगे जब हम खुद को दोषी ना मान कर आगे बढ़ेंगे ।"
          मधुरिता का चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था । तभी उसके पिता ने उठकर उसका कंधा थपथपा दिया और बोले  " जाओ बेटा वरना क्लास के लिए लेट हो जाओगे ।"

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