पहन पैंजनी बंदरिया ने
ठुमका खूब -लगाया
दौड़-दौड़ कर मस्त हवा में
चूनर को लहराया
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मोहिनीअट्टम, भरतनाट्यम
कुचिपुड़ी दिखलाया
घूम-घूम कर उसने सुंदर
घूमर नाच दिखाया
पीली-पीली बांध के पगड़ी
मस्त भांगड़ा पाया
पहन पैंजनी---------------
गोपी का परिधान पहनकर
रास नृत्य दिखलाया
कभी डांडिया करके उसने
अद्भुत रंग जमाया
करके लुंगी डांस सभी को
अपना दास बनाया।
पहन पैंजनी---------------
पश्चिम के कल्चर में ढलकर
बैले डांस दिखाया
भक्ति भाव में खोकर उसने
भक्ति नृत्य अपनाया
सच्ची श्रद्धा और लगन का
रूप हमें दिखलाया
पहन पैंजनी---------------
देखा बच्चो बंदरिया ने
हमको यह सिखलाया
तन,मन,धनसे जिसनेसीखा
कभी नहीं पछताया
सोनू ,मोनू ,सबने मिल कर
मंत्र अनोखा पाया।
पहन पैंजनी---------------
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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लेकर आशीर्वाद बड़ों का
दुनिया नई बसाएंगे
बड़ों से जो नहीं हुआ
बच्चे कर दिखलाएंगे
ठोकर जो भी लगती है
कुछ ना कुछ सिखलाती
निराश हो चुके मानव को
चलकर ये बतलाएंगे
निष्ठा पूर्वक काम यदि हो
मिलता है फल अच्छा
हिम्मत हार चुके जन को
मिलकर ये समझाएंगे
सुख दुख दोनों का होता
जीवन में निश्चित क्रम
कैसे भी हो दुख के पल
रोकर नहीं बिताएंगे
डॉ पुनीत कुमार
T-2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600
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जन्मदिवस पर राजू के
जब केक एक था आया ,
केक देखकर राजू का मन
भीतर से ललचाया ।
मम्मी थीं चौके में
पापा बाहर घूम रहे थे ,
सभी अतिथि राजू के मुख को
रह -रह चूम रहे थे ।
नजर बचाकर राजू ने
उंगली से केक उठाया ,
चाटा झटपट ,मजा केक का
राजू ने फिर पाया ।
मम्मी ने जब आकर देखा
बोलीं" किसने खाया ?"
राजू घबराकर तब बोला
"यहाँ न कोई आया।"
समझ गईं मम्मी
राजू को हल्की चपत लगाई ,
बोलीं" तुमको है पसंद
इस कारण ही तो लाई।
सब्र रखो जीवन में
इसका फल मीठा पाते हैं ,
मेजबान से पहले
आए सभी अतिथि खाते हैं।।"
रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
📞 99976 15451
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ऐनक पहनी,पुस्तक खोली।
फिर गुड़िया माँ से यों बोली।
पढ़ना मांँ मुझको सिखलाओ,
अपनी प्यारी हिन्दी बोली।
है यह सबसे प्यारी भाषा।
सारे जग से न्यारी भाषा।
'अ' अनार से आरम्भ होकर
'ज्ञ' ज्ञानी बनने की आशा
क्या हैं 'स्वर-व्यंजन' समझाओ
सारे अक्षर मुझे पढ़ाओ
कैसे लिखना यह समझाना
हिज्जे बोल-बोल करवाओ
-दीपक गोस्वामी 'चिराग'
बहजोई(सम्भल)
9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
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शाम ढले जब घर में
घना अंधेरा फैल जाए
पापा की थी एक चिन्ता
गुड़िया मेरी पढ़ न पाए
सोच विचार कर फिर
पापा मेरे लैम्प ले आए
जिसमें डाल तेलबत्ती
चिमनी चाँदी सी चमकाए
बैठ गुड़िया पढ़ने इसमें
इधर उधर अब ध्यान न जाए
चमका देगी जीवन को तेरे
रोशनी जो पुस्तक पर आए
डटी रह तब तक मेहनत पर
जब तक अपनी मंज़िल पाए
इसके थोड़े प्रकाश से ही
कल तू पूरा जग चमकाए
मेरी छोटी गुड़िया रानी
एक दिन बड़ी अफ़सर बन जाए
प्रीति चौधरी
ज़िला -अमरोहा
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सिंहासन पर बैठा टमाटर,
पास खड़े हैं मूली, गाजर।
मस्ती करते गोभी, आलू,
बैंगन, शलजम, प्याज, रतालू।
लौकी, तोरी, भिन्डी,चचींडे,
मटर, लोबिया, सेम और टिंडे।
मेथी, पालक,मिर्ची न्यारी,
कद्दू कटहल की पहरेदारी।
परवल ने आवाज लगाई।
इठलाती बीन्स भी आई।
करेले को क्यों भूले भाई,
अनेक रोगों की एक दवाई।
डाॅ० सुधा सिरोही
मुरादाबाद
9457038749
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मछली रानी, मछली रानी,
कितना गहरा नदी में पानी।
राज जरा जल के खोलो तुम तो हो जल की ज्ञानी।
मछली रानी-----
जल में कौन विचरता है,
जो जल को मैला करता है।
सबक सिखा दो उसको रानी,
जो जल से करता मनमानी।
मछली रानी-----
मछली बोली सुनो कहानी,
हाँ मै थी जल की ही रानी।
कीड़े मकौड़े खाती थी।
जल को स्वच्छ बनाती थी।
साफ था सब नदियों का पानी
मछली रानी-------
शुरू हुई जल से मनमानी, नदी में छोड़ा गन्दा पानी।
नही किसी ने की निगरानी,
किसी ने मेरी बात न मानी।
फिर कैसे मैं जल की रानी?
जब तक साफ, हो न पानी, मुझे न बोलो जल की रानी।
कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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मेरी टीचर सबसे प्यारी
रोजाना मुझें पढ़ाती है
बातें करती ज्ञान की
कहानी-कविता सुनाती है
सदा बडों का आदर करना
सबक हमें सिखाती है
मानवता का पाठ पढाकर
अच्छा इंसान बनाती है
आपस में सब मिलकर रहना
सीख यही सिखाती है
सदा ही आगे बढ़ते रहना
हौसला हरपल बढ़ाती है
खेल- खेल में संग हमारे
खुद भी बच्चा बन जाती है
मेरी टीचर सबसे प्यारी
इसलिए मुझको भाती है
स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
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मैं फलों का राजा हूँ
तपती गर्मी में आता हूँ
बच्चें ,बड़े सब मेरे दीवाने
खाकर मुझें झूमें मस्ताने
कच्चा रहकर आचार बनाऊँ
पकने पर सबके मन को भाऊँ
मुझसे बनते अनेक पकवान
जो खायें बन जायें बलवान
सृष्टि प्रज्ञा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
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छुक - छुक रेल चली
हम बच्चों की रेल चली
भक - भक धुआँ देती
खट - खट चलती रहती ।।
देखो - देखो टी टी आया ( 2 )
अपना टिकट निकाल लो ( 2 )
छुक - छुक - -- - - -- -- - -
देखो - देखो स्टेशन आया ( 2 )
अपना बैग संभाल लो ( 2 )
छुक - छुक - - - - - - - - - -
वो देखो पकौड़े वाला आया ( 2 )
अपने पैसे निकाल लो ( 2 )
गरम पकौड़े खा लो ( 2 )
छुक - छुक - - - - - - - - -
देखो देखो गाँव आया ( 2 )
हरा भरा इक खेत भी आया (2 )
खिड़की से निहार लो ( 2 )
छुक - छुक रेल चली
हम बच्चों की रेल चली ।।।
सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
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प्यारे बच्चों जल्दी आओ
मिलजुल कर रेल बनाओ
चन्नू बनेगा इसमें इंजन
बाकी सब डिब्बे बन जाओ
रामू तुम ड्राइवर बन जाओ
गुड्डू तुम सीटी बजाओ
इस रेल को तेज दौडाओ।
छुकछुक छुकछुक रेल चली
हम बच्चों की रेल चली।।
डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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मां की आँख के तारे
हमको शाम की सैर कराते
नानी के घर जब हम जाते
चाट पकोड़े जी भर खाते
हमको मस्ती खूब कराते।
लाड़ प्यार से रखते हमको
हम पर जीवन बारें।
मामा .......
रक्षाबंधन भाईदूज पर
मां को लेने आते
हमको भी उपहार मिठाई
संग में अक्सर लाते
जल्दी लेने आना हमको
होंगे ऋणी तुम्हारे
मामा ......
डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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काम सदा करते हम अच्छे।
ये सारी दुनिया झूठी है।
हम बच्चे ही हैं बस सच्चे।।
नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
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मम्मी-डैडी!यह बतलाओगे
कब जायेंगे हम स्कूल,
घर में अब तो बोर हो गये
पढ़ने में कैसे मन लागे ।
मोबाइल पर अब मे'म पढातीं
आँखे थक कर चूर हो गयीं,
कोई दोस्त नहीं अब मिलता,
सारे तो आन-लाईन हो गये।
तुम भी झुझंला जाती हम पर,
जब हम कुछ कुछ समझ न पाते ,
मोबाइल अब दोस्त हो गया
दोस्त भी जो,लड़ना ना जाने।
दादा-दादी, नानी-नाना सभी
तो अब आन-लाईन हो गये;
न मामा, न चाचा आयें,
सब के सब अनजान हो गये।
अब क्यों डांटोगी तुम मम्मी
मोबाइल पर आन-लाइन पढूंगा
जन्मदिन उपहार अब पापा,
मोबाइल ही देना होगा।
उमाकान्त गुप्ता
मुरादाबाद
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शानदार
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